हिंदी लेखकों को खुलकर लिखने नहीं दिए जाते !
मुझे आश्चर्य इस बात की है कि लेखकों से हिंदी और देवनागरी लिपि की अपेक्षा रखनेवाली एक पत्रिका ने मुझे जो मेल भेजे हैं, वो अंग्रेजी और रोमन लिपि में है !
डॉ. गुणाकर मुळे ने कहा है कि हिन्दी भाषा का विकास सिर्फ कविता और कहानियाँ लिखने से ही नहीं होगी, हिंदी माध्यम से शोध भी लिखने होंगे !
अगर हिंदी साहित्य को कविता-कहानी विधा तक ही सीमित रखना है, तो इससे हिंदी विस्तार कैसे हो पाएगी ? अभी नईवाली हिंदी का आंदोलन जो चल रही है, यह विस्तार के ही सापेक्षत: है !
जब आप लेखकों के परिचय छाप ही रहे हैं, तो क्या यह लेखक का विज्ञापन है ? नहीं न ! फिर तो किसी के बारे में लिखना असाहित्यिक कैसे हो सकती है ? कोई गिनीज बुक में हैं, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है, तो उनकी जीवनी ‘साहित्य’ कैसे नहीं है, वो बताएंगे !
‘गोदान’, ‘मैला आँचल’ से लेकर सबमें स्त्री-प्रसंग है, तो उसे भी बैन होनी चाहिए ! भारत में तस्लीमा नासरीन बैन कहाँ है ? आपने एक कवयित्री की कविता ‘चाक पर चढ़ी बेटी’ छापी है, वह क्या है ? अश्लील या श्लील ! पद्म अवार्डी खुशवंत सिंह का उपन्यास ‘औरत’, अज्ञेय की ‘शेखर : एक जीवनी’ क्या है ? सुदामा पांडे धूमिल, मुक्तिबोध, नागार्जुन इत्यादि की कविताएँ शासन पर ही चोट तो है और इन सभी को साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिले हैं ।
संस्कारी रचना से क्या आशय हैं, बताएंगे ? क्योंकि कोई भी पत्र-पत्रिका या वेबसाइटें ‘व्यक्तिगत’ नहीं होती, सार्वजनिक होती है ! तब तो उक्त पत्रिका में ऐसी कई रचनाएँ प्रकाशित हैं, जो मेरे डिलीट पोस्ट के आलोक में उसी दायरे में आती हैं, वो डिलीट नहीं हैं ! सिर्फ प्रशंसात्मक पोस्ट ही हो, तो साहित्यकार ‘लोकतंत्र’ की आवाज कैसे बन पाएंगे ?