अंधेरों का भरम
था अंधेरों का भरम सारे उजाले निकले
जो सभी साथ थे सब लूटने वाले निकले
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घर को था बंद किया पूरी सावधानी से
लौट कर आये तो टूटे सभी ताले निकले
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खूब अनदेखी की छोड़ आये बीच राहों में
आखरी पल में वही चाहने वाले निकले
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रख गया गिरवी कोई थाली पुरानी अपनी
कांच थे जितने लगे रत्न निराले निकले
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खंडहर जिनको बताता था गांव ही पूरा
की गई पूरी सफाई तो शिवाले निकले
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— मनोज श्रीवास्तव