कविता

उपसंहार

अंतिम – पात्र  प्रवीर सुधन्वा को, धन्ना – धन से कोई मेल नहीं,
सन्तातिथि  सेवक  होकर  भी , भगवान को पाना खेल  नहीं ।
दृढ़-प्रतिज्ञ अटल सुधन्वा  ,  द्वार पर भगवान लाना चाहता था,
तप  की  प्रतिगमन से आज , नहीं मौका छोड़ना चाहता  था  ।
सुधन्वा     जब      देखा    वहाँ ,  तो   कृष्ण   नहीं   थे    बैठे  ,
अर्जुन    केवल   खड़े   –  खड़े  ,  गाण्डीव   लेकर    ऐ    ऐंठे  ।
कृष्णभक्त   सुधन्वा  , कृष्ण  –  दर्शन   को   ले   बड़े   उत्सुक  ,
ललकार   से   कृष्ण   बुला , हे नर ! अर्जुन  से  लड़े   उपशुक ।
बच    तेल    कढ़ाही    से  निकल , सुधन्वा    अमर    बना  था ,
तीन – तीर   शपथ   लेकर    अर्जुन ,  यह     समर   बना   था  ।
त्रितीर   गमन  को   काट   दूंगा , ले    सुधन्वा   कृष्ण  –  शपथ ,
तीर -द्वय  काटकर  फिर  सुधन्वा, तीसरा  गिरा  आधा   कुपथ ।
अग्र   –   भाग    में     कृष्ण     हरे !  दर्शन    दे  –   दे   चिंगारी  ,
कटा  ग्रीवा  सुधन्वा  का  ,  कि  जन्मना  माँ  की कोख ए प्यारी ।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.