उपसंहार
अंतिम – पात्र प्रवीर सुधन्वा को, धन्ना – धन से कोई मेल नहीं,
सन्तातिथि सेवक होकर भी , भगवान को पाना खेल नहीं ।
दृढ़-प्रतिज्ञ अटल सुधन्वा , द्वार पर भगवान लाना चाहता था,
तप की प्रतिगमन से आज , नहीं मौका छोड़ना चाहता था ।
सुधन्वा जब देखा वहाँ , तो कृष्ण नहीं थे बैठे ,
अर्जुन केवल खड़े – खड़े , गाण्डीव लेकर ऐ ऐंठे ।
कृष्णभक्त सुधन्वा , कृष्ण – दर्शन को ले बड़े उत्सुक ,
ललकार से कृष्ण बुला , हे नर ! अर्जुन से लड़े उपशुक ।
बच तेल कढ़ाही से निकल , सुधन्वा अमर बना था ,
तीन – तीर शपथ लेकर अर्जुन , यह समर बना था ।
त्रितीर गमन को काट दूंगा , ले सुधन्वा कृष्ण – शपथ ,
तीर -द्वय काटकर फिर सुधन्वा, तीसरा गिरा आधा कुपथ ।
अग्र – भाग में कृष्ण हरे ! दर्शन दे – दे चिंगारी ,
कटा ग्रीवा सुधन्वा का , कि जन्मना माँ की कोख ए प्यारी ।