कविता

तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे…

चोट जब स्वाभिमान पर लगती है तो, करारा जवाब फिर मिलता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे, पर इक दिन नकाब ये उतरता है।

कौन हारा है गिनती के हथियारों से , इतिहास में देख लो फिर चाहे;
इक जज़्बा जो उमड़ता है अपनों का, वीरों के हौसलों में वो दिखता है।

तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे ………..

भूल कर भी न भूलेंगे वो ज़ख्म , तुम रह रहकर चोरी से जो देते हो;
जिस दिन होगा हिसाब सुन लो, फिर न नुकसान अपना भी दिखता है।

तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे,……….

परवाह कहां फिर परवाने मिटने की, करते हैं वतन‌ की आन शान पे;
मां कहते हम धरा को देशवासी, वो न बचता जो निगाह बुरी रखता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे………..

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

जय हिन्द!
जय हिन्द की सेना।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |