लोकजीवन की दशाएँ : सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और साहित्यिक विन्यास
लोकजीवन की स्थिति : सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और साहित्यिक विन्यास :-
1.] भारतीय स्वतंत्रता के पूर्व कथित अस्पृश्य व अछूत वर्ग, जो महात्मा गाँधी के द्वारा दिए नाम ‘हरिजन’ से ख्यात हुए, तो डॉ. भीमराव अंबेडकर और भारतीय संविधान के तत्वश: अनुसूचित जाति / जनजाति के हेत्वर्थ विहित हुए, फिर दलित और अब महादलित हो गए । यह सामाजिक स्थिति है ।
2.] सांस्कृतिक स्थिति में नुक्कड़ नाटक, कठपुतली कला से होते हुए लोकनृत्य, लोकनाट्य के विहित लोककला, फिर लोकगाथा तक घटनायें आगे बढ़ती रही !
3.] गाँधी जी के आखिरी लोगों तक पहुंचना अर्थात हमें जाति-पेशाकारों के आलोक में ही दलित वर्ग की आर्थिक स्थिति व ‘संपन्नता का सांख्यिकी महत्त्व’ विचारित करना होगा ।
4.] दलित-राजनीति अब अपरिचित नहीं है । भारत के संदर्भ में दलित डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान की रूपरेखा तय किये थे, तो बाबू जगजीवन राम उपप्रधानमंत्री तक पहुँचे । डॉ. के आर नारायणन और श्री रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने ।
5.] दलित साहित्य अब समय की माँग बन गयी है । मराठी साहित्य से निःसृत दलित साहित्य हिंदी में भी श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे रचनाकार दिए हैं ।