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सतरंगी समाचार कुञ्ज-25

(पाठक विशेष कड़ी)
आप लोग जानते ही हैं, कि ‘सतरंगी समाचार कुञ्ज’ में सात रंगों के समाचार हम लिखते हैं, शेष रंगों के समाचार कामेंट्स में आपकी-हमारी लेखनी से लिखे जाएंगे. आइए देखते हैं इस कड़ी के सात रंग के समाचार, इससे पहले इस कड़ी के बारे में एक जरूरी बात.

इस कड़ी के लिए हमारे पाठकों ने ही ”सतरंगी समाचार कुञ्ज-24” में विशेष समाचार भेज दिए हैं, इसलिए इसे पाठक विशेष कड़ी का नाम दिया गया है. अब देखिए पाठक विशेष कड़ी के समाचार-

1.टुंडाचौडा के मांझियों का सद्प्रयास-
टुंडाचौडा के मांझियों को सैल्यूट! — सड़क बनाने के लिए ग्रामीणों नें उठाये गैंती और फावड़े, श्रमदान से पहाड़ काटकर बना रहे हैं गांव की सड़क..कुछ साल पहले आई एक हिंदी फिल्म ‘द माउन्टेन मांझी’ ने दुनिया को दिखाया था की किस प्रकार बुलंद होंसलों के जरिये भी अकेले ही पहाड़ को काटकर सडक बनाई जा सकती है। लॉकडाउन के दौरान ऐसा ही कुछ कर दिखाया है उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के टुंडाचौरा के ग्रामीणों नें। आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी ये गांव सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाया था। जिस कारण नाराज ग्रामीणों नें लॉकडाउन के अतिरिक्त समय का सदुपयोग करते हुए सड़क निर्माण के लिए खुद गैंती, फावड़े और कुदाल उठाये। ग्रामीण बीते 12 दिनों से पहाड़ काटकर सड़क निर्माण कर रहे हैं। ग्रामीणों का लक्ष्य तीन किलोमीटर सड़क बनाने की है। सड़क निर्माण के लिए ग्रामीणों ने अपनी कृषि भूमि भी दान कर दी है। सड़क बनने से एक नहीं बल्कि चार गांव और एक इंटर कॉलेज भी लाभान्वित होगा। आज सड़क निर्माण के 12 वें दिन पड़ोसी गाँव इटाना, दुगई आगर ग्राम सभा के ग्रामीणों का सहयोग भी इन्हें मिल गया है। ग्रामीणों के इस अनुकरणीय पहल की चारों और भूरि-भूरि प्रशंसा भी हो रही है। आदरणीय लीला बहन एक सकारात्मक समाचार यह भी है.
इंद्रेश उनियाल

2.तिमला का अचार-
जहाँ इस कोरोना काल में लोग कोरोना का रोना रोने में लगे हैं, राजनीति कर रहे हैं, आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त हैं. कोई मजदूरों का रोना रो रहा है कोई अर्थव्यवस्था, कोई बेरोजगारी का पर ऐसे लोग भी हैं जो आज आत्म निर्भर बनने की दिशा में चल पड़े हैं क्योंकि उनकी सोच रोने की नहीं कर के दिखाने की है. ऐसी ही है एक उत्तराखंड के रमेश नेगी. मुंबई के एक होटल में नौकरी करने वाले रमेश नेगी का भी लॉकडाउन के कारण होटल बंद हुआ और दुर्भाग्यवश उनको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। ऐसे में वह टिहरी में स्थित अपने जरदार गांव में वापस आ गए। गांव वापस आ कर वो हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे। मुंबई में होटल में काम करते वक्त जो स्किल्स उन्होंने सीखी थीं उसका सदुपयोग करते हुए उन्होंने स्वरोजगार का जबरदस्त आइडिया सोचा। उन्होंने तिमला का अचार बनाना शुरू किया। जी हां, वही पहाड़ी फल जिसकी सब्जी बेहद स्वादिष्ट बनती है और इसका अचार भी बनता है जो लोगों को बहुत पसंद आता है। तिमला को अंजीर भी कहा जाता है। रमेश नेगी ने इसी तिमला का अचार बनाना शुरू किया है और स्वरोजगार की तरफ एक बड़ा कदम उठाया है। वह अभी तक 30 किलो से भी अधिक तिमला जमा कर चुके हैं। रमेश नेगी का कहना है कि गांव में वापस आकर हाथ पर हाथ धरे बैठने से बेहतर है कि कुछ रचनात्मक कार्य किया जाए। इसलिए उन्होंने तिमला का अचार बनाने का मन पक्का किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि शहरों में घुट-घुट कर जीने से अच्छा है कि गांव में सुकून भरी जिंदगी जिएं। बता दें कि बड़े-बड़े होटलों में तिमला के अचार की बहुत मांग है। ऐसे में उम्मीद है कि रमेश नेगी का तिमला का अचार बनाने वाला स्वरोजगार का यह आइडिया हिट होगा।
इंद्रेश उनियाल

3.काफल के गुण (फायदे)
काफल की मिठास!— लॉकडाउन में पहाड़ों के जंगलों में ‘काफल’ की भरमार, बहुमूल्य औषधीय गुणों का है खजाना…पहाड़ के लोक में काफल की मिठास का हर कोई मुरीद है। इन दिनों पहाड़ के अधिकांश जंगल काफल से लकदक हो रखे हैं। लोग काफल के मिठास का आनंद ले रहे हैं। भले ही कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट के इस दौर में चारों ओर निराशा का भाव फैला हुआ हो परंतु लॉकडाउन प्रकृति के लिए वरदान साबित हुई है। लॉकडाउन की अवधि में न केवल पर्यावरण स्वच्छ हुआ है अपितु जंगल व पेड़-पौधों के लिए संजीवनी साबित हुई है। इस साल पहाड़ों में काफल से जंगल अटे पड़े हुये हैं। लॉकडाउन के दौरान रामनगर से लेकर देहरादून तक काफल पाको, काफल पाको.. गाती हुई पक्षी की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।
— ये है काफल!
काफल मुख्यतः पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। इसे myrica nagi और myrica esculenta, boxberry के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल और उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं के पहाडी जनपदों में ये पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह 1000 से 2000 की ऊचाई में मिलता है। पूरे विश्व में काफल की 50 से अधिक प्रजातियां पाई जाती है।
— आर्थिकी का साधन!
काफल का स्वाद और लाल काला चटक रंग हर किसी को आकर्षित करता है, खासतौर पर पर्यटकों को बेहद भाता है ये काफल। ये स्थानीय लोगों के लिए आर्थिकी का भी साधन है। उत्तराखंड के गढवाल-कुमाऊं में अप्रैल मध्य से लेकर मई और जून मध्य तक ये मिलता है। स्थानीय लोग जंगलों से काफल एकत्रित करके बाजार में विक्रय करने लाते हैं। देहरादून, हल्द्वानी, नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, रानीखेत, पौडी, गोपेश्वर, पीपलकोटी, गैरसैण, द्वाराहाट, गुप्तकाशी, चंबा, टिहरी, मसूरी सहित अनेक शहरों में काफल 200 से लेकर 400 रूपये किलो तक मिलता है। काफल के सीजन में ग्रामीण काफल से अच्छी खासी आमदनी कमा लेते हैं। यदि हिमाचल राज्य की तर्ज पर उत्तराखंड में भी सरकार काफल को रोजगार से जोडने की कयावद शुरू करती है तो इससे हजारों लोगों को काफल के सीजन में तीन महीने का रोजगार अपने ही घर में मिल सकेगा।
— रामबाण औषधि है काफल!
काफल में औषधीय गुणों की भरमार है। काफल मुख्य रूप से हृदय रोग, बुखार, जुखाम, खून की कमी, अस्थमा, ब्रोकाइटिस, अतिसार, मूत्र विकार, पेट विकार, यकृत सम्बन्धी विभिन्न बीमारियों में लाभदायक होता है।
इंद्रेश उनियाल

4.सीमित शब्दों में लिखा गया –
विषय – क्या लॉकडाउन की चुनौतियां ही भविष्य की उम्मीदें हैं?

कोरोना आपदा में लॉकडाउन ने जीवन में उथल पुथल मचा कर रख दी है जैसे भूकंप में उलट पुलट हो जाता है. एक ढर्रे पर चली आ रही ज़िन्दगी की गाड़ी रास्ते से उतर गयी है. जीवन शैली में परिवर्तन हो गया है मानो एक नवयुग का निर्माण हो रहा है. इस लॉकडाउन ने निस्संदेह चुनौतियाँ पेश की हैं. जीने के अंदाज़ को बदलना होगा और यही बदलाव लाना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगा. इस जीवनकाल में जहाँ कुछ पुरानी आदतों को भूलना होगा वहीं जीवन शैली में समयानुकूल परिवर्तन लाकर खुशहाली लानी होगी. अर्थशास्त्र की बदली परिभाषा का सामना करना होगा. सबसे बड़ी चुनौती आत्मसंतोष जगाने की होगी. इस युग परिवर्तन के हम सभी साक्षी होंगे और चुनौतियाँ स्वीकार कर एक नया भविष्य लिखेंगे. (सुदर्शन खन्ना, दिल्ली)

इसी आलेख पर सुदर्शन खन्ना को ””अटल रत्न सम्मान- 2020” मिला. सुदर्शन खन्ना को ”गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर सम्मान- 2020” की कोटिशः बधाइयां व शुभकामनाएं.

5.क्या इम्यूनिटी बढने से हारेगा कोरोना ?

आज का विषय अत्यधिक महत्वपूर्ण है विशेषकर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ज्ञान देता है। हमें यह जानना होगा कि आखिर इम्यून सिस्टम की बात क्यों करते हैं? हमारे शरीर में रोगजनक जीवाणु होते हैं। डीएनए और आरएनए। डीएनए वायरस खुद काबू हो जाते हैं। आरएनए वालों के लिए हमारे शरीर को लड़ना पड़ता है। रोगजनक जीवाणुओं और विषाणुओं के लिए हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होना चाहिए। अब हमें इम्यून सिस्टम दिखता तो नहीं है जिसे हम महसूस कर सकें। 80 प्रतिशत इम्यून सिस्टम हमारे पेट में होता है। यदि हमारा पाचन तंत्र ठीक काम करेगा तो हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत रहेगा। हम इम्यूनिटी बढ़ाने की बात करते हैं तो हमें यह जानना होगा कि किन किन तरीकों से ऐसा किया जा सकता है। इसके लिए उत्तम है दही का सेवन। लहसुन भी उत्तम है। लहसुन को छोटे टुकड़े काट कर 5-7 मिनट हवा लगने दें। हवा लगने से उनमें जीवाणुरोधी पैप्टाइड्स पैदा होते हैं जो हमारे गट सिस्टम को प्रभावित करने वाले रोगजनक जीवाणुओं को शरीर से निकालने में मदद करते हैं। कई दिनों तक सेवन करने के बाद जब मुख से लहसुन की अत्यधिक महक आने लगे तो बंद कर दीजिए। इम्यून सिस्टम काफी मजबूत हो चुका होता है। अदरक भी बहुत बढ़िया है। अदरक को एक चम्मच के बराबर कद्दूकस कर लीजिये और 6 कप पानी में डालकर उबालें। 3 कप रह जाने पर शहद या गुड़ के साथ सेवन करें। इम्यून सिस्टम मजबूत होगा। यह रक्त को भी पतला करता है। आजकल खुमानी का मौसम है। हल्के संतरी रंग वाली खुमानी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। इम्यून सिस्टम को मजबूत करने का अर्थ है हमारे शरीर में कोरोना वायरस के आक्रमण से लोहा लेने के लिए प्रथम सुरक्षा पंक्ति तैयार करना। जितना मजबूत हमारा इम्यून सिस्टम होगा उतना ही हम कोरोना वायरस को पराजित कर पायेंगे। विटामिन ए और डी भी हमारी इम्यूनिटी बढ़ाता है। यदि किसी का शरीर बहुत मजबूत है तो इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि उसका इम्यून सिस्टम भी मजबूत होगा। संक्षिप्त में दी गई जानकारी से हम सभी समझ सकते हैं कि हमारी इम्यूनिटी बढ़ने से हम कोरोना वायरस को हरा पायेंगे। (सुदर्शन खन्ना, दिल्ली)

इसी आलेख पर सुदर्शन खन्ना को ”गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर सम्मान- 2020” मिला. सुदर्शन खन्ना को ”गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर सम्मान- 2020” की कोटिशः बधाइयां व शुभकामनाएं.

6.इसे कहते हैं जुनून, दोनों हाथ नहीं फिर भी चलाती हैं कार
ऐसी ही एक महिला हैं 28 वर्षीय जिलुमोल मैरियट थॉमस। असल में जिलुमोल एक दुर्लभ बीमारी (थैलिडोमाइड सिंड्रोम) से ग्रसित हैं, जिसकी वजह से जन्म से ही उनके दोनों हाथ नहीं हैं। लेकिन उनके जुनून में कोई कमी नहीं, वे अपने पैरों से कार ड्राइव करती हैं।

7.लॉकडाउन: महाराष्ट्र के सूखे इलाके नांदेड़ में पिता-पुत्र ने खोदा कुआं
महाराष्ट्र के सूखा इलाके नांदेड़ में एक पिता और पुत्र ने मिलकर कुआं खोद डाला। उन्हें 16 फीट पर पानी मिल गया है। पिता-पुत्र अब बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी हो गई थी, उन लोगों को घर के चिंता हो गई थी लेकिन खाली समय का उन्होंने सदुपयोग करने की ठानी, जिसके बाद कुआं खोदना शुरू कर दिया था।

कुछ फटाफट सुर्खियां-
1.मैथ्स ट्रिक्स: चुटकी बजाते करें गुणा, निकालें वर्ग

2.कोबरा सांप ने मुंह से निकाली प्लास्टिक की बोतल, लोग हुए शॉक्ड

3.इस पेड़ में कट लगाने पर निकलता है पानी, लोग बुझाते हैं प्यास

4.औरंगाबाद: गणपति के फंड से सोसायटी में बनाया COVID-19 आइसोलेशन सेंटर

5.बंदे ने बजाया गिटार, लेकिन महफिल इन तोतों ने लूट ली!

6.लड़के को पेड़ पर चढ़ता देख लोग बोले- ये तो ‘कृष’ है!

7.रोज 700 कुत्तों को खाना खिला रहा है नोएडा का यह लड़का

इन सभी समाचारों को आप गूगल सर्च करके पढ़ सकते हैं. ये सभी समाचार रोचक भी हैं और ज्ञानवर्धक भी.

आशा है आपको सतरंगी समाचार की यह कड़ी भी पसंद आई होगी. आप भी कामेंट्स में विभिन्न रंगों के ऐसे अनोखे-रोचक-जागरूकता से ओतप्रोत सकारात्मक समाचार लिख सकते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “सतरंगी समाचार कुञ्ज-25

  • लीला तिवानी

    सुदर्शन भाई की विशेष दर्शनीय पंक्तियां-
    ”यदि किसी का शरीर बहुत मजबूत है तो इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि उसका इम्यून सिस्टम भी मजबूत होगा।”

  • लीला तिवानी

    सुदर्शन भाई की विशेष दर्शनीय पंक्तियां-
    ”इस जीवनकाल में जहाँ कुछ पुरानी आदतों को भूलना होगा वहीं जीवन शैली में समयानुकूल परिवर्तन लाकर खुशहाली लानी होगी. अर्थशास्त्र की बदली परिभाषा का सामना करना होगा.”

  • लीला तिवानी

    इंद्रेश भाई और सुदर्शन भाई के द्वारा भेजे गए समाचारों से से सुसज्जित सतरंगी समाचार कुञ्ज-25 की यह विशेष कड़ी सचमुच विशेष बन पड़ी है. इंद्रेश भाई ने जहां जुनून और समय के अनुसार प्राप्त सुविधाओं का सदुपयोग करने के समाचार भेजे हैं, वहां कोरोना के संबंध में लिखते हुए सुदर्शन भाई की साहित्यिक भाषा के अनुपम दर्शन हो रहे हैं. केवल साहित्यिक भाषा ही नहीं ज्ञान का भंडार भी दर्शित होता है-

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