सीमा पर चढ़ आया दुश्मन
भूलो अपनी दलगत अनबन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
खतरे में है अब घर आँगन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
बात नहीं पोशीदा अब ये,
जान गया है इसको जन जन।
मतदो मन बढ़ अपना भाषन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
खूँटी टाँगो आज सियासत।
आपसकीसबभूल शिकायत।
आज पुकारे फिर से है रन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
आपस में बैठो मिलजुल कर।
बातकरोअब इसपर खुलकर।
आज व्यथित है यूँ ये तनमन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
ध्यान लगाओ इस पर हरपल।
किसकोक्या करनाहै इसपल।
देखो और दिखाओ दरपन।
सीमा पर चढ़ आया दुश्मन।
— हमीद कानपुरी