अब ब्रह्मास्त्र उठाओ
सुलग उठा फिर आज हिमालय, सुलग उठी फिर घाटी है
सुलग रहा है बच्चा-बच्चा, आग उगलती माटी है
दगाबाजियों ने फिर अपना , छुरा पीठ में घोंपा है
ईंट, ईंट से आज बजा दो , बड़ा सुनहला मौका है
ये विषधर जब करवट लेगा, ऐसे ही फुफकारेगा
फन कुचलो इसका वरना, हर बार ये हमको मारेगा
हमने इसको दूध पिलाया, हमने इसको पाला है
बीन बजाकर हम समझे थे, अब ना डसनेवाला है
नरभक्षी बन बैठा है ये, अब ना सोच विचार करो
विश्व कर रहा त्राहि-त्राहि, अब इसका संहार करो
कैलासधाम के हे प्रहरी! इक बार गगन हिल जाने दो
मानसरोवर की लहरों को, अंबर से मिल जाने दो
घर में भेदी भरे पड़े हैं, ये कुछ काम ना आयेंगे
जा कर सीमा पार ये सारे, चीनी से मिल जायेंगे
चर्चा-वर्चा, मान-मुनौव्वल, साँठ-गांठ अब बंद करो
अब ब्रह्मास्त्र उठाओ मोदी, अब तो सीधा द्वंद्व करो।
— शरद सुनेरी