कविता

काल बनी वो काली थी (काव्यांजलि)

महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस 18 जून
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काल बनी वो काली थी (काव्यांजलि)

झांसी रानी की कविता को आज पुनः दोहराता हूँ,
चौहान सुभद्रा की रचना को आगे और बढ़ता हूँ।
हिंदी वाली पुस्तक में हम सबने पढ़ी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
महादेव शिव की नगरी में सुंदर जन्मी बाला थी,
नाम मनु था देवालय की एक जलती सी ज्वाला थी।
नन्हे- नन्हे हाथों में ना कंगन का श्रृंगार किया,
बरछी और तलवारों को बचपन में ही धार लिया।
बचपन में ही पीत हुए कर बन रानी आयी झांसी में,
भाग्य बना दुर्भाग्य हुआ घिर विधवा की फांसी में।
बेटा रानी को जन्मा लेकिन ममता को तोड़ गया,
वज्राघात हुआ रानी पर और एकेला छोड़ गया।
सत्ता को सूना पाकर अंग्रेजी नीयत डोल गयी,
लेकर गोदी दत्तक बेटा खुद महलों की खोल हुई।
संविधान की फिकर किसे थी उनका ही कानून था,
लूट पाट करना ही उनके पत्रों का मज़मून था।
लेकिन रानी बनी सिंहनी गर्जन करती टूट पड़ी,
काट काट गोरों की गर्दन लहू की धारा फूट पड़ी।
पूरव पश्चिम उत्तर दक्षिण गगन चूमती घोड़े से,
किये दांत खट्टे लुच्चों के भागे छोड़ भगोड़े से।
उमा रमा को सुमरिन करती काल बनी वो काली थी,
बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।।

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल[email protected]