लघुकथा – हिंदी टीचर
गौरी मेडम के क्लास में आते ही सब बच्चों के मुँह लटक जाते ।
“लो आ गई अपने भारी भरकम शब्दों के साथ हिन्दी पढ़ाने”।
“हिन्दी न हो गई जी का जंजाल हो गयी “,गौरी गुस्से में बड़बड़ाते हुए क्लास से बाहर आ गयी।
क्या हुआ गौरी ?इतनीं परेशान क्यों हो ,आज फिर बच्चों ने हिन्दी के पीरियड में तुम्हें परेशान किया? प्रतिभा मेम ने सवालों की झड़ी लगादी ।
“क्या करूँ प्रतिभा मेम, मैं तो इन बच्चों को बहुत समझाने की कोशिश करती हूँ पर इनको हिन्दी विषय से न जाने क्या एलर्जी है कि पढ़ना तो दूर एक शब्द भी नहीं लिखते ।
उन्हें कैसे बताऊँ कि हर विषय की तरह हिन्दी विषय भी महत्वपूर्ण है।
स्वर, व्यंजन, वर्णमाला, रस ,छंद,अलंकार,दोहा ,रोला, सोरठा,व्याकरण आदि के बिना हिन्दी पढ़ और समझ नहीं सकते।
पर बच्चे तो इसे बोरिंग सब्जेक्ट मानकर पढ़ना ही नहीं चाहते।
और तो और अगर कोई पाठ पढ़ाऊँ तो बोलते कि आप इतने कठिन शब्द क्यों बोलते हो जो हमें समझ नहीं आते।
“हमारी भावी पीढ़ी के बच्चे ही हमारी मातृभाषा को पढ़ना और समझना ही नहीं चाहते “अपने मन की पीड़ा को व्यक्त करके गौरी मेडम स्टाफ रूम की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगी ।
— सपना परिहार