स्वस्थ अहसास
”महामारी का रूप लेती कोरोना जैसी बीमारी को हमारे बचपन में ही आना था?” सोचते-सोचते किंशुक मायूसी से मोबाइल को स्क्रोल करता जा रहा था.
”मायूसी और किंशुक!” किंशुक ने खुद से ही सवाल किया. ”मैं तो किंशुक हूं. किंशुक यानी फूल. फूल हर हाल में हमेशा मुस्कुराता रहता है और मुस्कुराना सिखाता है. फिर मैं तो लाल रंग का हूं! लाल रंग, जो प्रतीक है प्रेम और उत्साह का!”
”कोरोना ने बहुत कुछ छीना है, लेकिन बहुत कुछ दिया भी तो है! उस पर क्यों न सोचूं!” उसकी मुखमुद्रा में परिवर्तन आ गया था. मायूसी की जगह मुस्कुराहट ने ले ली थी.
”कोरोना ने लॉकडाउन दिया. लॉकडाउन ने हमें परिजनों का ऐसा स्नेह और समय दिया, जो कभी नहीं मिल सका था. किसी के पास बात करने का समय ही नहीं था, अब बातें-ही-बातें सुनने को मिल रही हैं. कितना ज्ञान भी तो बढ़ा है न हमारा!” किंशुक मन-ही-मन नई मिली जानकारियां दोहराने लगा.
”और हां, दादा जी के बचपन की शरारतों की बातों ने तो हमारी शरारतों को भी मात कर दिया! और फिर पर्यावरण की स्वच्छता भी तो लॉकडाउन ने ही दिखाई! पंछियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है.” उसकी चहचहाहट भी मुखर हो गई थी.
” किसी के पास योग करने और सिखाने का समय नहीं था. अब हर समय योग करते लोग और रेडियो-टी.व्ही. में योग की बातें!” किंशुक को शायद नींद ने घेर लिया था.
”योग, बनाए नीरोग.
”योग अपनाओ, बेहतर स्वास्थ्य पाओ.”
”योग का उजियारा, दूर करे जीवन का अंधियारा.”
”योग से होगी सृष्टि सुंदर, स्वास्थ्य का लहराएगा समुंदर.”
सपने में लगते योग के नारों ने किंशुक में भी योग द्वारा सृष्टि को सुंदर और रहने योग्य बनाने का स्वस्थ अहसास जगा दिया था.
”विष्णु पुराण में प्रह्लाद कितना स्वस्थ और संतुष्ट दिखाई देता है. हर समय योग-ध्यान में मस्त जो रहता है.” स्वप्न की सोच अभी जारी थी.
”ममा, योग का कोई चैनल लगा दो न! मैं योग से स्वस्थ बनूंगा और सृष्टि को भी सुंदर बना दूंगा.” स्वस्थ अहसास से सराबोर किंशुक ने सुबह उठते ही ममा से कहा.
प्रिय अनंत भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपकी यह पंक्ति- ”नजरिया सकारात्मक होना सफलता के लिए अत्यावश्यक है” एक अनमोल वचन कीतरह है. इसे हम अपने अगले विशेष सदाबहार कैलेंडर में सम्मिलित करेंगे. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
हर बात के दो पहलू होते हैं मुख्य बात हमारा नजरिया होता है कि हम क्या देखना चाहते हैं. बाल मन तो सकरात्मकता से भरा होता ही है। इस लॉक डाउन में बच्चों द्वारा रखा गया धैर्य शायद हम वयस्कों के लिए हमेशा प्रेरणास्पद रहेगा. लॉकडाउन की स्पष्ट नज़र आ रही है. ”स्वस्थ जीवन, स्वच्छ सोच” जीवन का मूलमंत्र है. शायद हम किंशुक से ”सकारात्मक सोच, हटाए मोच” सीखकर योग को अपनी जीवन-शैली बना सकें!
बहुत सुन्दर संदेश से पूर्ण रचना। नजरिया सकारात्मक होना सफलता के लिए अत्यावश्यक है।