दर्द अब हद से
दर्द अब हद से गुजरता जा रहा है।।
ज़ख्म भी रूह में उतरता जा रहा है।।
सामने बैठा था तब तक कुछ नही था।
बाद तेरे तू बहुत याद आ रहा है।।
तेरे कुछ कहने की ज़रूरत ही कहाँ।
चेहरा हाल-ए-तिश्नगी बतला रहा है।।
बिगड़े हुए मौसम से डरो न तुम ये।
अंदाज़-ए-मौसीक़ी मुझे सिखला रहा है।।
हर बार और हर बात में बस तू ही तू।
क्यों इतना लाज़िमी सा हुआ जा रहा है।।
है शौक के संग अतिशों का डर भी ‘लहर’।
वो दूर से ही हाथ सेके जा रहा है।।