नींद से बोझिल
नींद से बोझिल तर आंखों में।
सपना कोई धर आंखों में।।
उसे ठिकाना मिला न कोई।
आ बैठा हँसकर आंखों में।।
गुज़र गया है वक्त तो देखो।
छोड़ गया मंज़र आंखों में।।
कोई छवि तो उभरी होगी।
इन सूखी बंजर आँखों में।।
ज्यूँ ही पलकें पल भर झपकें।
चमक उठी झाँझर आँखों में।।
जब भी देखूँ यहीं दिखे वो।
बना लिया क्या घर आंखों में।।