गीतिका/ग़ज़ल

पिता

अहसासों का सार पिता हैं,
विश्वासों से प्यार पिता हैं ।

परम पिता की संतानों को,
सचमुच में उपहार पिता हैं ।

गहन तिमिर को परे हटाकर,
फैलाते उजियार पिता हैं ।

सूरज,चंदा,धरती,तारे,
पूरा इक संसार पिता हैं ।

दुख,पीड़ा,ग़म,व्यथा,वेदना,
में हरदम हथियार पिता हैं ।

जब भी कोई विपदा आई,
तब-तब तो हथियार पिता हैं।

मेरे मन की पीड़ाओं का,
सतत्,सघन संहार पिता हैं ।

अच्छाई औ’ सच्चाई का,
सचमुच में अभिसार पिता हैं ।

बिन उनके असहाय सदा हम,
हम सबके हथियार पिता हैं ।

जीवन में रौनक के मेले,
खुशियों की झंकार पिता हैं ।

हर पल उनके बिन है सूना,
मधुवन का आसार पिता हैं ।

साथ सभी लगते बेमानी,
बस जय जय जयकार पिता हैं ।

‘शरद’ यही माने है हरदम,
ईश्वर का आकार पिता हैं ।

— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]