नीति स्पष्ट नहीं होने के कारण कांग्रेस नियति के हाथों में है । वर्ष 1977 के आमचुनाव में इंदिरा कांग्रेस की हार और पंजाब में अकाली दल की जीत से प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार बनी थी। अकाली दल हर जगह कांग्रेस को हराता था, जिसके चलते कांग्रेस प्रबंध कमेटी ने इसके लिए किसी ऐसे कद्दावर आदमी को खोज निकालने के लिए कहा, जो अकालियों को टक्कर दे सके ! पंजाब से दो आदमियों को चुना गया था, जिसमें एक भिंडरावाले था । श्रीमान संजय गांधी को भिंडरावाले का अक्खड़पन और तीखे तेवर भा गए थे।
तब संजय गांधी के करीबी मित्र कमलनाथ ने इस बात को पत्रकार कुलदीप नैयर से बातचीत में माना कि वह लोग भिंडरावाले को कभी-कभार आर्थिक मदद भी करते थे, ताकि उसका कद और प्रभाव पंजाब में बढ़े और अकालियों को वह टक्कर दे सके, लेकिन उनको भी अपेक्षा नहीं थी कि भिंडरावाले आगे चल कर भस्मासुर बन जाएगा! निरंकारी और अकालियो का बैर हमेशा से चलते आया हैं। इधर निरंकारी पंथ में जीवित डेरा प्रमुख को गद्दी मिलती है और वह संत या बाबा कहलाते हैं, जिसे अकाली दल नहीं स्वीकारते हैं। उसी दौर में कुलदीप नैयर भिंडरावाले से इन्टरव्यू के लिए गए थे।
उन्होंने अपनी किताब में इस घटना का ज़िक्र भी किया हैं। उन्होंने भिंडरावाले से पूछा था कि आपके साथ इतने हथियारबंद लोग क्यों रहते हैं? भिंडरावाले ने पलट कर सवाल पूछा था कि पुलिस वालों संग इतने हथियार क्यों रहते हैं? पत्रकार नैयर ने कहा कि पुलिस तो सरकार की नुमाइंदी हैं। तब भिंडरावाले ने कहा कि उनसे जाकर कहना मुझसे टक्कर लेकर तो देखें, उन्हें पता चल जाएगा कि सरकार किसकी है? यह बात चल ही रही थी कि देश के कद्दावर नेता स्वर्ण सिंह जो कि कांग्रेस शासन में रक्षा और विदेश मंत्री रह चुके थे, वह कमरे में आये और तख़्त पर बैठे भिंडरावाले के सामने हाथ जोड़ कर फर्श पर बैठ गए।
यह देख कुर्सी पर बैठे कुलदीप नैयर हड़बड़ा कर उठे और स्वर्ण सिंह से बोले कि, अरे आप यहाँ बैठिये। तो सरदार स्वर्ण सिंह ने भिंडरावाले की तरफ देखते हुए कहा कि संतो के सामने मैं कुर्सी पर नहीं बैठ सकता, मैं यही ठीक हूँ । इस घटना का ज़िक्र उस समय के कुलदीप नैयर ने अपनी किताब ‘बियॉन्ड द लाइन, एन ऑटोग्राफ’ में किया हैं।