बुझती जा रही भारतीय भाषाएँ
नष्ट होती जा रही कई भारतीय भाषाएं, जैसे- प्राकृत, कैथी, अवहट्ट, अपभ्रंश, पालि इत्यादि । भारत की बहुसंख्यक आबादी हिंदी भाषा जानती है और हिंदी भाषा से ही संबंध रखती है।
‘भारतीय भाषा की अनदेखी का सिलसिला’ शीर्षक आलेख में Mr. प्रेमपाल शर्मा ने यह बताया है कि अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है, किंतु देश के अंदर जिस तरह से हिंदी का नुकसान हो रहा है।
सिर्फ हिंदी ही क्यों, अन्य भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थी जिस तरह से UPSC की परीक्षाओं में कम होते जा रहे हैं । इससे अपने देश में ही प्रचलित भाषाओं की मान्यता को समाप्त कही जा सकती है।
संस्कृत तो कब की ही मर चुकी है ? बिहार में इंटर के सिलेबस से हटा दी गयी है, फिर हम कालिदास जयंती क्यों मना रहे हैं अन्य दक्षिण भारतीय भाषाएं तो अपनी ही राष्ट्रभाषा ‘हिन्दी’ से लड़ रही है ।
किसी देश की श्रेष्ठ भाषा उनकी अपनी ही भाषा हो सकती है, जो बहुसंख्या में बोली जाती है । इसलिए हिंदी को दयनीय होने से बचाएं।