स्वास्थ्य का टॉनिक (लघुकथा)
फोन की घंटी बजी तो तिवारी जी पत्नी ने फोन उठाया और बोली – “बहुत बहुत धन्यवाद भाई साहब दुर्गेश जी, ये आजकल पुस्तकें पढ़ने में समय व्यतीत करते खुश नजर आते है । बच्चो को डाँटना और चिड़चिड़ापन भी बहुत कम हो गया”
तभी वहा बैठे पड़ोसी ने पूछा – भाभी जी, ये जादू कैसे हुआ, जरा समझाओ ।
तिवारी जी की पत्नी बोली – “दरअसल इनके मित्र दुर्गेश जी 15 वर्ष पूर्व सेवा निवृत्त होने पर भी स्वस्थ और खुश मिजाज नजर आते है । पाँच वर्ष पूर्व सेवा निवृत्त हुए ये (तिवारी जी) रोज सुबह बगीचे में मिलते थे । एक दिन नही मिले तो दुर्गेश जी यहाँ आ गए ।”
चाय की चुस्की लेते हुए ये दुर्गेश जी को बोले, -“लॉक डाउन के कारण अब घर पर समय व्यतीत नही होता । तुम तो लेखक हो, लिखने-पढ़ने में समय व्यतीत हो जाता होगा ।”
तभी में बीच में बोल पड़ी – “भाईसाहब, ये चिड़चिड़े होते जा रहे है । हाई ब्लड-प्रेशर रहता है । बच्चों को डाँटते रहते हैं ।”
तब दुर्गेश जी ने कहा – “देखो तिवारी जी, मैं भी तो लेखा सेवा से सेवानिवृत्त हुआ हूँ । पहले तो सेवानिवृति पर भेँट में मिली भागवत गीता पढ़ी और फिर बच्चों द्वारा लायी गयी सकारात्मक सोच की पुस्तकें पढ़ता रहता हूँ। अब पिछले पाँच वर्षों से फेसबुक पर लिखते-लिखते अच्छे मित्रों का सान्निध्य मिल गया और पता नही मैं कब कहानी, कविताएं लिखने लग गया ।”
ये (तिवारी जी) बोले – “ठीक है, दुर्गेश जी, किन्तु मेरी तो लेखन में कतई रुचि नही है ।”
तब दुर्गेश जी बोले – लेखन में रुचि न सही, किन्तु मैं तुम्हें देने के लिए “जीत आपकी” और “बड़ी सोच का बड़ा जादू” ये पुस्तकें लाया था, तुम बगीचे में नहीं मिले तो ये पुस्तकें देने ही घर आया हूँ । इन्हें मेरी सलाह से अवश्य पढ़ना ।”
“ये उन सकारात्मक सोच की पुस्तकों से प्रभावित हो स्वयं कुछ विवेकानंद जैसे विचारकों की पुस्तकें और खरीद लाये। अब इनका फेसबुक मित्रों से अपने विचार साझा करते रहने में कब समय कट जाता है, पता ही नहीं चलता । अब ये सभी को सलाह देते है कि बुढापे में नित्य योगा करने व सकारात्मक सोच की पुस्तकों को पढ़ विचार साझा करने से बढ़िया स्वास्थ्य के लिए और कोई टॉनिक नही है ।”
पड़ौसी ये कहते हुए उठ खड़ा हुआ “वाह ! मित्र हो तो दुर्गेश जी जैसा ।”
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला