पर्यावरणलेखविज्ञान

मोबाइल टावर से निकलनेवाली तरंगपुंज हैं क्षतिकारक या लाभदायक ?

मैं मोबाइल टावर की बात नहीं कर रहा, किंतु अगर लगातार मोबाइल व्यवहार से उपयोगकर्त्ता को क्षति पहुंच सकती है, तो असंख्य चालू मोबाइलों से निःसृत rays and radiation की उपस्थिति मात्र से यह छोटी चिड़िया के दियाद-गोतिया विनष्ट होने के कगार पर क्यों नहीं पहुँच सकती है, सिर्फ गोरैया की नहीं ! छोटी चिड़िया बुलबुल, रसपिया या रसपीया आदि की यही दु:स्थिति है । गाँव भी शहर बनते जा रहे है । वनों का सफाया, युवा वृक्षों की कटाई, तालाबों में मिट्टी भरकर सपाट किये जा रहे हैं, उसपर गैस गोदाम या पेट्रोल पंप बन रहे हैं । विदित हो, छोटी-छोटी पक्षियों को नदियों से जल ग्रहण करने में डर और संकोच होती है, किंतु तालाबों व पोखरों से ऐसा नहीं होती है । बहती नदियों के जलस्रोत में हिंसक जलीय जीव भी तो सकते हैं । इसके साथ ही गोरैये के डैने उतने मजबूत भी तो नहीं होते हैं । बाग-बगीचों अथवा शहरी पार्कों में मनुष्यों ने ही तो कब्जा कर रखे हैं । मिट्टी और फुस का घर गोरैयों के आवासन के लिए सबसे अनुकूल है। आकाश चूमती इमारतें और संचार-संबंधी तमाम activities उनके लिए जीवन दूभर कर दिए हैं । मोटरकारों, रेलों की पों-पों सहित प्रदूषित पर्यावरण और उद्योग-धंधों की विकास-यात्रा लिए कल-कारखानों से निकली धुंए से उनके जीवन अभिशप्त हो रहे हैं । गोरैया घास के बीजों से भी अपनी आहार चुगती है । पर्यावरणप्रेमी से लेकर पर्यावरणविद तक गोरैयों के दशा एयर दिशा को लेकर बेहद चिंतित हैं, परंतु भारत के ही नहीं, प्राय: देशों के वन और पर्यावरण मंत्रालयों का रुख इस ओर बेरुखी लिए है। कृषि में भी जैविकनाशक दवाइयों का छिड़काव बीज को विषाणु बना दे रहे हैं, हालाँकि यह मनुष्यों को सीधे तौर पर attack नहीं कर रहे हैं, किंतु गोरैयों द्वारा इन कीड़े-मकोड़े को चखने मात्र से वे असमय काल-कवलित हो रहे हैं । पतंगबाजी प्रतियोगिता, हवाईअड्डे के आसपास वाले क्षेत्र, तो चील, गिद्ध, कौवे इत्यादि झपटमार बड़े पक्षी भी उन्हें ‘चट मंगनी, पट ब्याह’ की भाँति उन्हें शीघ्र ही आहार बना लेते हैं । ज्ञात हो, पतंगों के खेल में उनके चोंच, पैर, पंख और आँख घायल हो जाया करते हैं । गोरैयों के अंडे, बच्चे व चूजे को सर्प आदि हिंसक जीव या दुष्ट प्राणी आहार बना लेते हैं । भारत में गोरैया संरक्षण के लिए नियम बनानेवाले महाराष्ट्र पहले राज्य हैं, उत्तर प्रदेश दूसरे, दिल्ली तीसरे और चौथे में बिहार आते हैं। सर्वप्रथम वर्ष 2008 में गोरैया के संरक्षण के लिए जागृति लिए चलाई गई  वैश्विक मुहिम ने रंग लाई । विश्व गोरैया दिवस 20 मार्च 2010 को पहलीबार व्यवस्थित ढंग से नेचर फाइबर सोसायटी के द्वारा मनाया गया। सनद रहे, प्राय: गोरैये का जीवन काल 11 से 13 वर्ष होता है। यह समुद्र तल से 1,500 फीट ऊपर तक पाई जाती है। गोरैया पर्यावरण में कीड़ों की संख्या को कम करने में मदद करती है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.