ग़ज़ल-घर के जैसा ठौर कहाँ है
करके देखा गौर, कहाँ है?
तुझ सा कोई और कहाँ है?
क्या फल की उम्मीद करें हम,
इन आमों में बौर कहाँ है?
हाथ मिलाना भूल गये सब,
अब पहले सा दौर कहाँ है?
ख़ुद को वो चाहे जो कह ले,
लेकिन अब सिरमौर कहाँ है?
जो माँ के हाथों मिलता था,
रोटी का वो कौर कहाँ है?
जग में हम कितना ही घूमें,
घर के जैसा ठौर कहाँ है?
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी