ग़ज़ल
मुल्क भर का दुलारा हुआ।
जीत कर खेल हारा हुआ।
जीत लाये अदालत से जब,
तब हमारा हमारा हुआ।
आमद ए यार जिस दम हुई,
खूबसूरत नज़ारा हुआ।
क्या हुआ है पता कीजिये,
फूल क्यों कर शरारा हुआ।
आप जब से गये छोड़कर,
गर्दिशों में सितारा हुआ।
था बना खिदमते खल्क को,
लूट का इक इदारा हुआ।
माँगता फिर रहा मौत अब,
ज़िन्दगी से है हारा हुआ।
— हमीद कानपुरी