निर्गुण और सगुण !
निर्गुण की अपेक्षा ‘भौतिक’ देह से नहीं की जा सकती है और सगुण-उपासना के लिए देह्यष्टि तो चाहिए ही । सगुण जहाँ जैविक शरीर की ओर इंगित करता है, जो कि हाड़-माँस के देह के विहित है और हाड़-माँस के देह में तनिक ही सही, अवश्य ही ‘निजी स्वार्थ’ रहता है । निःस्वार्थ सेवक के अंदर भी प्रकाश (Highlight) में आने की उत्कठ कामना होती है, जो कि कोई पुरस्कार या सम्मान उन्हें एक मंच या प्लेटफ़ॉर्म या पहचान देता है । ‘पद्म सम्मान’ भी उनके काम की मुहर और ‘catalyst’ है ।
संत मदर टेरेसा को कुष्ठ रोगियों के महान सेविका के तौर पर जानी जाती है, ऐसे ही बाबा आम्टे रहे । उनके कार्य धरती पर के महान कार्यों में एक है, क्योंकि कोई सुख-चैन की ज़िन्दगी छोड़ वैसी ज़िन्दगी चुनने को हिचकिचाते हैं, परंतु सभी कुछ त्यागकर ही मिलता भी है तो अंश- मात्र ! कोई इन सब चीजों को ‘सोच’ कार्य करते भी नहीं हैं, तथापि निःस्वार्थ व्यक्ति भी न चाहकर भी अपना मूल्यांकन औरों के मुख से सुनने की चाह रखता है । यह हाड़-माँस के देहेच्छा की बानगी-भर है । तभी तो अन्य देश से आये व अन्य देशों के संत टेरेसा, नेल्सन मंडेला व खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित हो जाते हैं, यह उनके कृतित्व और व्यक्तित्व का महान पक्ष है, किन्तु हम अपने प्रतिभासम्पन्न लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते !