टेरता पपीहा मन
रसाल सी रसीली आम्र कानन बीच वह,
वर्षा वारि धार साथ खेलती-नहाती है।
प्रकृति सुंदरी समेट सुंदरता सकल,
समाई है उसमे वह रति को लजाती है।
प्रेम झूले में झूलती इठलाती कली वह,
मर्यादा में बंधी पर प्रेम न जताती है।
उपवन सुवासित है उसकी सुवास से,
हंसे तो मीठी स्वर लहरी बिखराती है।
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प्रेम-ताप से तपी तमाल देह पर पडी।
बारिश की बूंदे प्रेम आग धधकाती हैं।।
गुलाबी मन-गात पर काम लगाये घात।
प्रेम पीयूष से सिंचित हृदय बाती है।
पिय को प्रेम पाती लिख भेजती घटाओ से,
उर मिलन की चाह पर सकुचाती है।
‘मलय’ बयार बैरी टेरता पपीहा मन,
बीते है दिन पर न रैन कट पाती है।।
— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’