धैर्य का पाठ ( बालकथा )
गर्मी की छूट्टियां शुरू होने वाली थी , गोलु आज खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था ।
ढ़ेरों उत्साह से लबालब दौड़ कर माँ के पास जाते हुए पूछा माँ—
“अब मैं बड़ा हो रहा हूँ , आप चाहें तो बाजार का कोई काम मुझे भी करने दे सकती हैं ।”
“हूँहहह… मेरा राजा बेटा बड़ा हो गया है ! मम्मी पापा की मदद करना चाहता है ! फिर आज सड़क किनारे जाकर सारे जूते पॉलिस करवा सकते हो ?”
“हाँ माँ क्यों नहीं ।”
कहते हुए गोलु सारे जूते शूज रैक से निकाल कर मोची की दूकान तक गया । अरे ! इतना छोटा सा बच्चा काम कर रहा है ! वह चुपचाप अपने जूतों के थैले लेकर खड़ा रहा । पॉलिश खत्म कर अपने हाथों वह लड़का उस ग्राहक को जूते पहनाने लगा और तो और, वह बत्तमीज इंसान उस नन्हें सें बच्चे की हथेली पर पैर रखकर जूते पहनाने का इशारा किया ! पैसे देकर वह ग्राहक चला गया ।
अब वो लड़का गोलु से मुखातिब हो-“हाँ बाबू आपको भी जूते पॉलिश करवाने हैं ?”
गोलु ने घर से लाये सारे जूते थैले से निकाल कर दे दिये । हम उम्र बालक और इतना मेहनती देख कर गोलु भौंचक था । पैसे देने समय गोलु से रहा नहीं गया , वह पूछ बैठा–“क्या नाम है तेरा तुम पढ़ाई क्यों नहीं करते हो ?अभी तो तेरे खेलने खाने के दिन हैं ।”
“बाबु खेलने खाने की उमर में ही हूनर सीख सकता हूँ वरना बापू की तरह दिन-रात ताश के पत्तों से खेलता रह जाऊँगा सारी जिंदगी ।”
गोलु आश्चर्य चकित हो पूछ बैठा–“तो क्या तेरी कमाई से घर खर्च चलता है ! तुम तो अभी बहुत छोटे हो , तुम्हें अपने हमउम्र बच्चों के संग खेलने का मन नहीं करता है ?”
बातचीत बंद हो गई क्योंकि एक ग्राहक और आ गया था जूते मरम्मत कराने ।
वापस लौटते वक्त गोलु के दिलोदिमाग में हलचल मच गई थी । मन ही मन सोचने लगा ,मुझे कुछ करना नहीं होता है । बस पढ़ना-लिखना और खेल-कूद करना फिर भी मैं थक जाता हूँ , इस बच्चे में गज़ब का धैर्य है,काश कोई धैर्य के पाठ का भी कोर्स बुक होता । तभी उसे अपने टीचर की बात याद आई ।
धैर्यवान बनने की कला माँ से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं सिखा सकता है योगा सर कहते हैं ,इंसान की प्रथम गुरू माँ होती है ।
अपने आप में खोया खोया गोलु घर पहुंच गया ,।
“गोलूsssss…इधर आओ बेटा; रसोईघर पूरा बिखरा हुआ है समेटने में मदद करो ।”
गोलू दौड़ कर आया आश्चर्य से “माँ आप मुझसे मदद माँग रही हैं ? आज तक तो आप मुझे सिर्फ पढ़ने के लिए कहती थी ।”
“हाँ मुझे तेरी मदद चाहिये , इस बार फिर गरमी की छुट्टियों में तुम्हें बहुत कुछ सिखाना चाहती हूँ ।”
“क्या सब सिखायेंगी ? प्लीज मम्मा कोई नया कोर्स ज्वाइन करने मत कहना , हर साल की तरह कभी कराटे कभी ज़िम कभी फुटबॉल कभी स्वीमिंग
समर वेकेसन आकर चला जाता है, मैं छुट्टियों में बहुत ज्यादा थक जाता हूँ ।”
गोलु की बातें सुनकर रीमा सोच में पड़ गई ,गोलु की तकलीफ का उसे अंदाजा नहीं था ।
ओह ! गोलु के बालमन पर छूट्टियों में अतिरिक्त बोझ डाल कर उसके मासूम बचपन के साथ अंजाने में ही सही खिलवाड़ हो रहा था !
“मम्मा कहाँ खो गई ? आपने मुझे मदद करने के लिए बुलाया था , कैसी मदद चाहिये आपको ?”
“बेटे मुझे माफ कर दो, जाओ जाकर खेलो ,सच में तुझ पर गर्मी की छूट्टियों में अतिरिक्त बोझ डाल कर तेरे साथ नाइंसाफी करती हूँ , इसबार तुम अपनी मरजी से बताओ कि अपनी छुट्टी कैसे बिताना चाहते हो ?”
“सच माँ ! फिर ठीक है मुझे इस बार कुकिंग क्लास ज्वाइन करनी है ,लेकिन कहीं बाहर जाकर नहीं घर में अपनी पसंद और पापा की पसंद का खाना बनाना सीखना चाहता हूँ ।”
खुशी के अतिरेक में गोलु धाराप्रवाह बोलता चला गया ।
रीमा को तो मानों मनचाही मुराद पूरी हो गई , बिना पलकें झपकाये बस सम्मोहित सी गोलु को देखते ही जा रही थी ।
गोलु–
“सॉरी माँ आपने मदद के लिये बुलाया और मैं अपनी ही धुन में सब कुछ भूलकर जो जी में आया बोलता चला गया ।”
गोलु को सीने से लगाते हुए–
“मेरा राजा बेटा ; तुमने तो मेरे मन की बात समझ ली । आज से नहीं बल्कि अभी से तेरी ट्रेनिंग शुरू । सबसे पहले तो धुले बर्तनों को अच्छे से पोछ कर कैबिनेट में सजा दो , फिर सभी मसालों से तेरा परिचय करवाती हूँ ।”
गोलु खुशी खुशी झटपट सारे बर्तनों को पोछ कर ठीक से रखने लगा ।
खुशी के मारे बेकाबू हो बोलता ही जा रहा था–
“माँ जानती हैं ; हमारे स्कूल के योगा सर हमें क्या कहते हैं ?”
” क्या कहते हैं सर ? जरा मैं भी तो सुनूं ।”
“सर कहते हैं, जो इंसान घर में माँ बहनों की इज्जत करना सीख जायेगा ,उसे जिंदगी में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है ।”
“मैं सर की बात नहीं समझा , फिर उन्होंने कहा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी औरत अपने धैर्य एवं सहनशीलता के बल पर घर पर आने वाली हर विपत्तियों का सामना वह स्वयं करना जानती हैं ।”
“माँ ; सर सही कहते हैं, आप जिस हिम्मत से घर बाहर संभालती हैं,काश वैसा धैर्य मेरे पास होता ।”
“अच्छा आप मुझे मसाले की पहचान कराइये ।”
एक एक कर सारे मसालों के डब्बे निकाल कर कौन किस खाने में कितनी मात्रा में दिये जाते हैं , गोलु पूछता रहा ।
खाना पीना खाकर सभी आराम करने जाने लगे, गोलु सब्जियों के बारे में पूछने लगा ।
“गोलु इस समय तुम रात में क्या बनेगा क्योंं पूछ रहे हो ?”
“वह इसलिए माँ कि मुझे होमवर्क भी चाहिये । मैं सब्जियों को धोकर एवं अच्छी तरह काट कर रखूँगा ,फिर आप बताना कि मेरा होमवर्क सही हुआ या नहीं ।”
इस तरह एक एक कर गोलु रसोईघर में सारे काम पूरी इमानदारी से सीखता रहा ।
लगभग दस दिनों बाद खुद अपने लिये परीक्षा भी आयोजित किया ।
पापा के लिए चार रोटी एवं बाकी सभी के लिये दाल-चावल और एक सब्जी बिना किसी मदद के गोलु ने पूरा खाना बनाया ।
खाने के टेबल पर आज वर्षों बाद रीमा को गरम भोजन नसीब हुआ । रीमा की आँखें भर आई । गोलु को प्यार से गले लगाते हुए; “मेरे बच्चे तुम इस परीक्षा में पूरी तरह सफल रहे अब बताओ मुझे , तुम खाना बनाना क्यों सीखना चाहते थे ?”
“वो इसलिये माँ कि आपका सबसे ज्यादा वक्त रसोईघर में बीतता है, मैं भी देखना चाहता था कि वह धैर्य हमारे अंदर है या नहीं, क्योंकि भोजन बनाकर सबके दिल को जीतना सिर्फ माँ ही जानती है ।”
रीमा गोलु की बातें सुन सुन कर भावुक होने लगी–
“बस बस बहुत हुआ, अब सच में तेरी तपस्या भी शुरू हो जायेगी । इस बार का कोर्स आजीवन तूझे काम आयेगा, भोजन बनाना धैर्य प्यार एवं समर्पण से ही सीखना संभव है।”
गोलु भावुक होते हुए माँ के आँचल से खेलने लगा
“माँ जानती हैं–बचपन से ही मैंनें आपको घंटों रसोईघर में पसीना बहाते देखा है, फिर भी आपका व्यवहार मधुर एवं वाणी सौम्य रहती है । मुझे सदैव आपकी यह अच्छाई सीखने का मन करता था , आपको क्या लगता है ? क्या मैं परीक्षा में सफल हुआ ?”
“रीमा गोलु के माथे को चूमते हुए–
बेटे धैर्य का पाठ पढ़ने में तुम पूरी तरह सफल रहे ।”
— आरती रॉय