संस्मरण में सरकार !
विकास पर जाति अब भी हावी है, बिहार में कभी यादव, तो कभी कुर्मी…. एक एससी बना, तो गर्भकाल (9 माह) लिए ! करोड़ों की आबादी के बावजूद कोई अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है ? कर्नाटक का नाटक ‘लिंगायत’ के प्रति था या विकास के ! भारत में— ‘जाति, जो नहीं जाती !’
बिहार में एक उप-राजा ने बेटे की शादी में सिर्फ मिठाई बाँटे, दूजे यानी आय से अधिक सम्पत्तिवाले पूर्व राजा-रानी ने अपने बेटे की शादी में अरबों फूंक डाले, उस बेटे की शादी में, जिन्होंने देश के प्रधान माननीय को कहा था- ‘…. शरीर से चमड़ा उधेड़ लेंगे !’
सड़क पर खामख़्वाह ! अच्छे सड़क बनते हैं, किन्तु बगलगीर लिए ‘धर्मकांटा’ बन जाता है, फिर जाम ही जाम ! जहां धर्म गायब है और शेष बचता है… ‘काँटा लगा !’ इतना ही नहीं, अपने होशकाल से सुन रहा हूँ, साहिबगंज-मनिहारी गंगा पुल बने, फिर गौशाला रेलवे गुमटी (कटिहार) पर ओवरब्रिज बने, अबतक सटक सीताराम ही है ।
स्वास्थ्य को लेकर AIMS की बात करूं, तो इधर मेरे प्रियजन वहां गए थे, एक तो नम्बर लगाने हेतु स्थानीय सांसद की गुहार लगानी पड़ी, तो वहीं डॉक्टरों ने इस कदर बीमारी के नाम पर असाध्यरूप में डराया कि वे भागकर घर लौट आए और यहां झोलाछाप से इलाजरत हैं !
घर की बेटी तो बच गई, किन्तु बेटी इतना पढ़ गई और उच्च शिक्षित हो गई, फिर मास्टरनी भी हो गई, किन्तु 35 साल बाद भी वे दुल्हिन नहीं बन पाई है । ऐसी एक नहीं, घर में दो-दो ! क्या मास्टरनी की इच्छा के विरुद्ध उनकी शादी असाक्षर और कम उम्रवाले से करा दूँ!