कविता
जिन्दगी की राह को आसान बनाता चला गया।
यहां जो भी शक्स मिला कुछ सिखाता चला गया।
मोहब्बत में गम न मिले, खुशी चाहे कम मिले,
रस्म ये अदायगी निभाता चला गया।
यहां जो भी शक्स मिला कुछ सिखाता चला गया।
कुछ ख्वाब टूटे और अपने भी हमसे रुठे
मैं हर एक यूं मनाता चला गया ।।
यहां जो भी शक्स मिला कुछ सिखाता चला गया।
मैं ढूंड रहा था वीरानों में आशियाना ,
उजड़ी हुई बहार को गुलशन बनाता चला गया।
यहां जो भी शक्स मिला कुछ सिखाता चला गया।
मुझे अपनो ने अपना समझना बन्द कर दिया ,
मैं दीवाना था जो परायों को भी अपना समझता चला गया ।
यंहा जो भी शक्स मिला कुछ सिखाता चला गया।
— वीणा चौबे