कविता

ईश्वर एक एहसास

जब कभी सोचता हूं
भगवान है कि नहीं
तभी एक आवाज
दूसरी तरफ से आती है
पूछती है
छोड़ इसे
वोह है कि नहीं
पहले यह बतला कि तू
इंसान है कि नहीं
तू हर तरफ
हर किसी में
ऐब ही ऐब ढूंढता है
पर वो जिसपे तू सवाल
उठा रहा है
क्या कभी उसने तेरे ऐब को देखा
ये मंद समीर जो वह रहा
क्या उसको तूने देखा
यह फूलों की सुगंध
जो दे रही तेरी सांसों को मधुवास
देखा है तूने कभी इसको
यह पानी की ठंडक
यह आग की तपिश
यह स्नेह का स्पर्श
यह सब क्या है
बता क्या है
बड़ा ज्ञानी है तू तो
तू तो मर्मज्ञ है
यह सब एक अहसास है
और उसका होना न होना भी
एक अहसास है
*ब्रजेश*
२९ जून २०२०

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020