गीत
दिनकर ने शोले बरसाये,पर अब तो राहत है ।
बहुत दिनों के बाद सभी की,खिली खिली तबियत है ।।
ताल-तलैयां रीत गये थे
नदियां भी थीं सूखी
बुझा-बुझा मन रहता था
और काया भी थी रूखी
बारिश की बूंदों से पर अब,हर उर आनंदित है ।
बहुत दिनों के बाद सभी की,खिली खिली तबियत है ।।
कंठ शुष्क थे,जी घुटता था,
बेचैनी मुस्काती
सारा आलम व्यथित हुआ था
सांसें भी थम जाती
पर मेघों का भला ‘शरद’ हो,लगता सुखद सतत् है ।
बहुत दिनों के बाद सभी की,खिली खिली तबियत है ।।
स्वेद बहा करता था निशिदिन,
पर अब जल साथी है
आसमान से अमिय बरसता,
हर शय अब गाती है
अवसादों की हुई विदाई,हर पल उल्लासित है ।
बहुत दिनों के बाद सभी की,खिली खिली तबियत है ।।
बूंदें लाईं नवल संदेशे,
अमन-चैन के मेले
शीतल अहसासों ने आकर,
दिये हर्ष के रेले
जीवन को नवरूप मिला अब,चिंतन हुआ सुवासित है ।
बहुत दिनों के बाद सभी की,खिली खिली तबियत है ।।
— प्रो.शरद नारायण खरे