पहली फरवरी को पहलीबार बजट
पहलीबार पहली फ़रवरी 2019 को भारत सरकार ने ‘बजट’ (2017-18) में पेश किया था तथा पहलीबार 2017 में ‘रेल बजट’ भी पेश नहीं हुआ था, हालाँकि रेल-बजट की शुरुआत 1924 में हुई थी, तथापि सरकार ने सम्मिलित बजट पेशकर अनर्गल खर्च व अपव्यय को कम करने महत्वपूर्ण का निर्णय लिया था। 2017-18 का बजट माननीय अरुण जेटली और श्रीमान् अरविंद सुब्रह्मण्यम के प्रयास से ‘केशलेश’ की दुनिया के आगाज़ होना कह सकते हैं।
तभी तो आसमानी सरकारी चंदे पर अंकुश लगा, तो सरकारी दफ्तरों में रिश्वत के रूप में आवत ‘नकद नारायण’ पर रोक लगने की प्रबल संभावना बढ़ी, लेकिन 2019 की अंतरिम बजट कुछ अलग रुख लिए था जैसे – मध्यवर्गीय परिवारों को टैक्स में राहत, किसानों के लिए योजना आदि-आदि। वैसे प्रतिपक्ष की राय हर मायने में अलग ही होती है, क्योंकि उन्हें अपने लोगों के लिए रोटी सेंकने होते हैं । वैसे ईश्वर भी सबको संतुष्ट नहीं रख सकते हैं।
फिर तो हम मानवों में संतुष्टि की बात करना ही निरा लिफाफेबाज़ी होगी। किन्तु अधिकांश आम जनता जारी अंतरिम ‘बजट’ के पक्ष में प्रतीत होते हैं । हमें यह भी सोचना होता है, देश की अखण्डता और अक्षुण्णता को कायम रखने के लिए बजट का काफी हिस्सा ‘रक्षा-बजट’ के लिए देना होता है । शिक्षा, कृषि और गरीबी भी तब देश-हित में बौने ही रह जाते हैं, लेकिन यह इस बार सही था । निष्कर्षतः, बजट का अर्थ ‘चमड़े का थैला’ होता है, जो आज काफी परिष्कृत रूप में आ गया है।