लेख

कविता सम्वेदना है..हृदय का प्रस्फुटन है”

कविता सम्वेदना है..हृदय का प्रस्फुटन है”

कविता क्या है? इसे समझना भी आवश्यक है,। मुझसे जुड़े हुए कई लोग ख़ासकर मेरे विद्यार्थी अक्सर पूछते हैं कि सर मुझे कविता लिखना सीखना है। मैं उनके सवालों का एक ही उत्तर देता हूं कि कविता कोई सीखने या समझाने की चीज नहीं है, यह तो उतरने की चीज है। भारत की संस्कृति अनादि है, जिसमें दो चीजें संस्कृति की सहचरी हैं। एक नदी औऱ दूसरी कविता। देश की सभी सभ्यताओं का विकास नदियों और कविता से हुआ। दोनों में प्रवाह है, गति है , धारा है। सरिता धरती का श्रृंगार करती है तो कविता मानव की भाषा का श्रृंगार कर देती है ।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा “जब कवि “भावनाओं की प्रसव” से गुजरते हैं तो कविताएँ प्रस्फुटित होती है।” काव्य क्या है? इसे हम काव्य शास्त्रीय सन्दर्भ में देखें तो हमारे आचार्य भामह, रुद्रट , कुंतक, राजशेखर थोड़े बहुत अंतर से यह मानते हैं कि कविता के लिए आवश्यक है प्रतिभा। कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा। इसके अतिरिक्त व्युत्पत्ति और निरतंर अभ्यास से काव्य सृजित किया जासकता है। अब यह भी कारण है कि कविता लिखी क्यों जाती है ? प्रयोजन क्या है? तो हमारे आचार्यो ने माना कि कविता के अन्यान्य प्रयोजन हैं। काव्य अमंगल के निवारण , आनंद की प्राप्ति , अर्थप्राप्ति, यशप्राप्ति ,लोक कल्याण आदि प्रयोजन से लिखा जाता है।
वेद-पुराण स्मृतियां सब कविता हैं । अन्य धर्मों की बात करें तो कुरान – बाइबल कविता हैं , जिनका प्रस्फुटन हुआ ये सभी गेय हैं और जो गेय है वह गीत है, वह कविता है, काव्य है।कविता प्रस्फुटन है, अंकुरण है,पहाड़ों से फूटता हुआ झरना है। प्रातःकालीन पुष्पों की महक है, मकरन्द है, मलयाचल की सुगंध है। छायावाद के स्तम्भ कवि सुमित्रानंदन पंत ने लिखा कि “वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान, निकलकर आँखों से चुपचाप वही कविता होगी अनजान”।पन्त के भाव को आज की तरुणाई बुनियादी तौर पर समझने में त्रुटि कर देती हैं । वियोग का अर्थ केवल नायिका- नायक या हिंदी फिल्मों में जैसा देखते हैं , वहीं तक लगाकर सीमित कर लेते हैं। वियोग का अर्थ है किसी के भी प्रति चाहे वह प्रकृति हो, राष्ट्र हो, जीव-जन्तु हों , को देखकर उनके प्रति तीव्र सम्वेदना का पैदा होना है, यही सम्बेदना हृदय से आन्दोलन कर देती है , तब मंथन आरम्भ हो जाता है फिर शब्दों का जो नवनीत निकलता है वह कविता है। पहली बार यह आंदोलन महर्षि बाल्मीकि के भीतर तब हुआ जब एक बहेलिया ने मैथुन रत क्रोंच पक्षी का वध किया था और वियोग की पीड़ा से जनित पहली कविता छंद बद्ध हुई। देश दुनिया में जहां भी मानव औऱ मानवेत्तर को पीड़ा हुई कि कवि को वेदना आरम्भ हो जाती है। सरहद पर सिपाही के शहीद होने पर कविता फूटती है,सुशान्त आत्महत्या पर कविता पीड़ा की व्याख्या है औऱ केरल में हथिनी की मौत पर कवि कराह उठता है।
अंततः कविता हृदय का विषय है। आपकी सम्वेदना ही कविता है, यह आवश्यक नहीं कि उसे शब्द मिलें । निःशब्द भी कविता है, बस उसे समझने के लिए कवि हृदय का होना आवश्यक है।

डॉ.शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल[email protected]