लघुकथा

मेरी आई

आज वह विदेश से लौट रहा था।पुष्पा बार-बार अपने धुँधले पड़े चश्में की धूल साफ कर रही थी।वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी।शुभम के आने की खबर ने उसका मन प्रफुल्लित कर दिया था।पर अगले ही पल उसका मन उदास हो गया।पता नहीं,अब शुभम को अपनी आई याद भी होगी या नहीं।वह सिर्फ उसकी आया ही तो थी।
उसे आज भी याद है जब शुभम मात्र पाँच महीने का था।उसी ने उसे अपना दूध पिलाया था।वह भी उसकी छाती से ऐसे चिपट जाता था, जैसे उसका अपना लाल हो।उसने उसे उँगली पकड़ कर चलना सिखाया था।वह अपनी मम्मी के पास जाता ही कहाँ था?जाता भी क्यों?मालकिन को फुर्सत ही कहाँ थी,वह उसे बात-बात पर झकझोर देती थीं।वह तो मालिक के साथ मीटिंगों में ही व्यस्त रहती थी।पैसा सिर्फ पैसा एक ही लक्ष्य था मालकिन का।जब भी वह मम्मी के साथ रहने की जिद्द करता,वह उसे डांट देती।पुष्पा संभालो इसे बहुत परेशान करता है।मेरी गोद में आकर वह सबकुछ भूल जाता था।उसे मम्मी पापा याद ही कहाँ आते थे?वह भी मेरी बेटियों की तरह ही मुझें आई बोलता था।पूरे आँगन में आई-आई करता फिरता था।उसके स्कूल के दिन,फिर कॉलेज के दिन सभी याद थे उसे।जब वह विदेश पढ़ने जा रहा था।बार-बार यहीं कह रहा था, मम्मी आई को मेरे साथ भेज दो।कितना गुस्सा किया था मालकिन ने, अब तुम बड़े हो गए हो।क्या लगा रखा तुमने आई-आई?उनके जाने के बाद मैंने भी वहाँ से काम छोड़ दिया था।
अपनी छड़ी लेकर घर से निकल ही रही थी कि सामने एक जवान लड़का मुझें देख कर हाथ हिला रहा था।वह पास आकर बोला मेरे साथ चलोगी।कौन हो तुम बेटा?उसने जोर से मेरा हाथ पकड़ लिया और चिल्लाया, आई भूल गई अपने शुभम को।मेरी आँखों से खुशी के आँसू झलक गए।आई कोई ऐसा दिन नहीं जब तुम्हारी याद ना आई हो।पर बेटा, तुम्हारे मम्मी-पापा।मालकिन ने मुझें गले से लगा लिया।पुष्पा ये हम दोनों का बेटा है।जो प्यार तुमनें इसे दिया है, मैं उसका अहसान कभी नहीं उतर सकती।मैं तो पैसा कमाने की मशीन बन गई थी।उसका बचपन तो तुम्हारे ही आँचल की छाँव तले बीता था।शुभम बीच में ही बोल उठा,चलो आई अब तुम हमेशा मेरे ही साथ रहोगी।शुभम आज भी आई-आई पुकार रहा था।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

1006/13 ए,महावीर कॉलोनी पानीपत-132103 हरियाणा Whatsapp no 7206316638 E-mail: [email protected]