जीवित किंवदंती : नेताजी सुभाष
नअंग्रेजी राज से प्रताड़ित और अपने ही जमींदारों से शोषित-वंचित भारतीयों के मसीहा थे – सुभाष चंद्र बोस । आई.सी.एस. में चौथा स्थान और देशसेवा के लिए कलक्टरी छोड़ी तथा जनमानस में छा गए । दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष होकर भी वे पार्टी-पॉलिटिक्स से ऊपर की चीज हो गए थे, क्योंकि वे मानवता से प्यार करने लगे थे । हर भारतीयों के हितों की सोचने लगे थे, तभी तो उन्हें ‘नेताजी’ कहा जाने लगा था।
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आज़ादी दूँगा’ फख्त ‘नारा’ नहीं था, बल्कि वे हर भारतीयों में गुलामी के विरुद्ध लड़ने का ज़ज़्बा पैदा करना चाहते थे । वे ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते थे और उन्हें अपेक्षा था कि उनके लोग(भारतीय) भी ऐसा करे । सभी गोपनीय फ़ाइल खुलने के बाद भी नेताजी के मौत का रहस्य अब भी यथावत् है । वे जीवित किंवदंती तो थे ही, उनकी मृत्यु भी किंवदंती बनकर रह गयी है । जनवरी माह के 23 तारीख को उनकी जयन्ती है । आजादी के इस मसीहा को किसी भी प्रसंग में हाशिये में नहीं रखा जा सकता ! जयंती पर उन्हें सादर स्मरण….