मूक संवाद
जहाँ शब्दों का कोई मोल न हो
वहाँ बेहतर होता है मूक हो जाना
कुछ संवाद मूक हो कर पूरे हो जाते हैं
और कभी कुछ बोलकर भी पूरे नहीं हो पाते हैं
तब नहीं होता कोई कोलाहल
होती है बस शांति चारों ओर
कोई दिल रहने लगता है खुश तो
किसी दिल में मचा होता है शोर
सोचो तो ज़ियादा कठिन नहीं होता इसे निभाना
बस रुक जाता है मिलकर मुस्कुराना
लफ्ज़ जो अंदर ही दब जाते हैं
बस थोड़ा ही वो दर्द पाते हैं
उन लफ्ज़ो की अपेक्षा जो बोलकर
काट दिये जाते हैं जुबां के धारदार हथियार से
बेहतर ही तो होते हैं मूक संवाद
भक्त औऱ भगवान के मध्य वही संवाद ही तो होता है
जो आत्मा को परमात्मा से मिलाता है
कौन कहता है बेहतर नहीं होते ये
बेहद खास भी होते हैं ये मूक संवाद
— प्रियंका त्रिवेदी