गीत/नवगीत

सुगत सवैया – गरमी

आतप,ताप भरा भू,अम्बर, विकट रूप ग्रीष्म ऋतु आयी ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
जेठ मास की तपिश कँटीली, सूख गए वन उपवन सारे ।
लू के घायल करे थपेड़े ,त्राहि माम हर प्राण पुकारे ।
महासमर का दृश्य डराता,उग्र अगन दे रही दिखाई ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।।
खग विह्वल हो इत उत घूमें,कोमल पाँख रहे मुरझाए ।
नदी,नाल जल रहित हुए सब,कहां छुपें कित प्राण बचाएं ।
नियति बनी निर्मम जब भारी ,हुआ श्वास लेना दुखदायी ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
राह-रात भर सजनी तकती,याद सजन की बहुत सताए ।
है चहुँ ओर जलन के घेरे, तड़प विरह की सही न जाये ।
जीर्ण हो रही निर्मल काया, पी के संग गयी तरुणाई।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
— रीना गोयल

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर