कहानी

सामंजस्य

सीमा,तुम क्या चाहती हो?साफ-साफ कह क्यों नहीं देती?कम से कम हम दोनों चैन से रह तो सकते हैं।कब तक सहन करूँगा तुम्हारी चिक-चिक?
हाँ-हाँ, अब तो तुम्हें मेरी हर बात चिक-चिक ही लगेगी।नई सहेली जो मिल गई है, वहीं तुम्हारे लिए सब कुछ हो गई।जब देखों उसी के नाम की रट लगाए रहते हो।गीता ऐसी है,गीता वैसी है।मेरे तो कान पक गए हैं। उसकी तारीफ सुनते-सुनते।मैं आज भी उस घड़ी को कोस रही हूँ। जब मैंने उसे
गरीब,कमजोर,जरूरतमंद समझकर उसकी मदद के लिए तुमसे सिफारिश की थी।मुझें क्या पता था कि मैं खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मर रही हूँ?
अब बस भी करो सीमा। क्यों सुबह-सुबह मेरा मूड खराब कर रही हो?तुम्हारा मूड तो ऑफिस जाते ही ठीक हो जाएगा।तुम्हारी सहेली जो बैठी होंगी, तुम्हारे इंतजार में।
रवि,सिर पिटता हुआ ऑफिस के लिए निकल पड़ा।पूरे रास्ते भर वह घर में हो रहे क्लेश के बारे में सोचता रहा।आखिर सीमा समझ क्यों नहीं रही,गीता सिर्फ मेरी सह-कर्मी है।
उसका स्वभाव ही इतना अच्छा है कि हर कोई उसका बन जाता है।पूरे ऑफिस को उसने अपने व्यवहार की मिठास से बाँध रखा है।इसमें बुराई ही क्या है?
उसे खुद पे ही झल्लाहट हो रही थी।इस सब के लिए वह खुद को ही दोषी ठहरा रहा था।क्यों वह सीमा के सामने उसकी तारीफ के पुल बाँधता है?एक औरत कभी अपने पति के मुँह से दूसरी औरत की तारीफ सहन नहीं कर सकती।
ऑफिस पहुँचते ही गीता ने रवि के लिए कॉफ़ी भिजवा दी।थोडी देर में वह खुद ही फाइल लेकर उसके केबिन में पहुँच गई।सर क्या आप परेशान हैं?नहीं घर पर थोड़ी बहुत कहा-सुनी हो ही जाती है, कोई खास बात नहीं है।सर जी,क्या में आपकी कोई मदद कर सकती हूँ?प्लीज सर मुझें अपना ही समझिए।
वो मेरी पत्नी को तुमसे बहुत जलन होती है, क्यों सर?
बस मैं घर पर तुम्हारी तारीफ कर देता हूँ इसलिए वह मुझ पर भड़क उठती है।बस सर,इतनी सी परेशानी है,इसका तो हल में चुटकियों में कर दूँगी।सच क्या इसका हल इतना सहज है?जी सर।
आप अपनी पत्नी को ऑफिस की कोई भी बात शेयर ना करें।ऑफिस और अपनी गृहस्थी में थोड़ा सा सामजस्य बिठाए।मेरी आलोचना शुरू कर दे।पर तुम्हारी—।घर जाते ही,सीमा एक कप चाय तो पिला दो,इस गीता ने तो मेरा दिमाग ही खराब कर दिया है।सीमा का चेहरा खिल उठा।वह सीधी किचन में गई।दो कप चाय बनाई और रवि के सामने बैठ गई।रवि,तुम चिन्ता मत करो सब ठीक हो जाएगा।चाय का मजा लो।रवि उसके खिलते चेहरे को लगातार देख रहा था।वह बहुत खुश लग रही थी।
रवि ने चाय की खुल कर तारीफ की।आज चाय बहुत अच्छी बनी है।सच रवि,वह खिसक कर उसके और करीब आ गई।
उसका स्पर्श पा कर वह हैरान था।अब रवि ऑफिस की झूठी शिकायत करता,और सीमा उस पर खूब प्यार लुटाती।वह मन ही मन चहक उठती कि उसने अपने पति को दुबारा पा लिया है।
रवि गीता का मन से धन्यवाद कर रहा था कि उसने कितनी आसानी से उसे जीवन में सामंजस्य बिठाना सिखा दिया?
सर अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं?इतना सुनते ही दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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One thought on “सामंजस्य

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राकेश जी , लघु कथा बहुत अच्छी लगी . औरत की औरत से जलन . इसी लिए बहुत मर्द सहकर्मी औरतों की बातें पत्नी को बताने से गुरेज़ करते हैं . अगर आप इजाजत दें तो आप की कहानी को इंग्लैंड के एक रेडिओ को भेज दूँ . जब यह कहानी रेडिओ पे पढ़ी जाती है तो लोग घरों से इस के बारे में अपने अपने कॉमेंट बोलते हैं . आप की इजाजत के बगैर भेज नहीं सकता .

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