सुगत सवैया – गरमी
आतप,ताप भरा भू,अम्बर, विकट रूप ग्रीष्म ऋतु आयी ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
जेठ मास की तपिश कँटीली, सूख गए वन उपवन सारे ।
लू के घायल करे थपेड़े ,त्राहि माम हर प्राण पुकारे ।
महासमर का दृश्य डराता,उग्र अगन दे रही दिखाई ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।।
खग विह्वल हो इत उत घूमें,कोमल पाँख रहे मुरझाए ।
नदी,नाल जल रहित हुए सब,कहां छुपें कित प्राण बचाएं ।
नियति बनी निर्मम जब भारी ,हुआ श्वास लेना दुखदायी ।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
राह-रात भर सजनी तकती,याद सजन की बहुत सताए ।
है चहुँ ओर जलन के घेरे, तड़प विरह की सही न जाये ।
जीर्ण हो रही निर्मल काया, पी के संग गयी तरुणाई।
रुद्र रूप दिनकर ने धारा,देह तपी धरणी अकुलायी ।
— रीना गोयल