उम्र
उम्र उतार फेक देती है औरत जब
बंदिशों का बोझ बढ़ जाता है
जब खुद का वजूद खत्म होने लगता है
पहचान सिमट जाती किसी के नाम के साथ
तब बागी बन उम्र उतार फेंकती है
खोई ख्वाहिशों को नींद से जगा
चल देती है उस सफर पर — जहाँ कोई मंजिल नही होती
ज़िद से भर जाता है उसका मन
उन हसरतों के लिए जो पूरी नही कर पाई थी
एक नदी जो किनारों को तोड़
डुबो देना चाहती है सब कुछ जो अन्तर्मन में उबल रहा होता है
बस इसलिए उम्र को उतार फेक देती है एक स्त्री —- शायद मन की पूर्णता के लिए
— डॉली