गीत/नवगीत

गीत “प्रीत का व्याकरण”

घूमते शब्द कानन में उन्मुक्त से,
जान पाये नहीं प्रीत का व्याकरण।
बस दिशाहीन सी चल रही लेखिनी
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।

ताल बनती नहीं, राग कैसे सजे,
बेसुरे हो गये साज-संगीत हैं।
ढाई-आखर बिना है अधूरी ग़ज़ल,
प्यार के बिन अधूरे प्रणयगीत हैं
नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी,
खो गये हैं सभी आजकल आचरण।
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।

सूदखोरों की आबाद हैं बस्तियाँ,
आज गिरवीं पड़ा है तिजोरी में दिल।
बिक रहा बोतलों में जहाँ पेयजल,
आचमन के लिए है कहाँ अब सलिल।
खोखले छन्द बोलेंगे कैसे व्यथा,
स्वार्थ के वास्ते आज पोषण-भरण।
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।

चारणों के नगर में, सुख़नवर कहाँ,
जिन्दग़ी चल रही भेड़ की चाल से।
कौन तूती के सुर को सुनेगा यहाँ,
मढ़ रहे ढपलियाँ, बाल की खाल से।
लाज कैसे बचे द्रोपदी की यहाँ
कंस ओढ़े हुए हैं कृष्ण का आवरण
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है