लकीरें
लकीरें कुछ कहती है
अगर पढ़ सको तो पढ़ों
किस्मत में लिखा होता है
उस पाने लड़ सको तो लड़ो
टेढ़ी मेढ़ी चलती हैं वो
कोई सीधा रास्ता नहीं
मंजिल का नाम बताती
पर सफर से वास्ता नहीं
हथेली में उनका जाल बुना है
सबने अपना काम चुना है
कोई भविष्य की नौकरी बताएं
किसी को बच्चों की चिंता सताए
कोई उम्र का गान सुनाएं
कोई अपने कर्म गिनाए
अगर पढ़ सको तो पढ़ लेना
यह सब राज हमारे बताएगी
वर्तमान में रहकर वह तो
भविष्य से परिचय कराएगी
— नीलेश मालवीय “नीलकंठ”