नर बने दानव खड़े हैं
है नज़र जिस ओर जाती,नर बने दानव खड़े हैं ।
खून पीने को जिगर का, जान के पीछे पड़े हैं ।।
काज करते हैं घिनौने, बोल मीठे बोलते हैं,
आम जन की जिंदगी में, विष यही तो घोलते हैं।
हो गए साधन सुलभ पर,क्यों विकल हर आदमी है,
खुश धनिक हर ओर है अरु,दीन के दृग में नमीं है।
दौर कैसा आ गया है,लोग औंधे मुँह पड़े हैं।।
खून पीने को जिगर का,जान के पीछे पड़े हैं ।।
धूप की बरसात भारी ,छाँव का छाता छिदा है,
है बड़ा लाचार निर्धन,पर सबल पर सब फिदा हैं।
रेत होती जिंदगी पर , आस का तरुवर हरा है।
कील सी चुभती गरीबी, जी रहा मन बावरा है।
व्यर्थ है आँसू बहाना,सब हुए चिकने घड़े हैं ।
खून पीने को जिगर का, जान के पीछे पड़े हैं ।।
— रीना गोयल