गुरु पूर्णिमा के महात्म्य क्यों हैं ?
महर्षि पराशर और मछुआरिन मत्स्यगंधा उर्फ सत्यवती के प्रेम संयोग से उत्पन्न संतान, जो कृष्ण यानी काले रंग के थे तथा जिनका जन्म द्वीप में हुआ था और जो सभी धार्मिक साहित्य में पारंगत थे अर्थात कृष्ण द्वैपायन व्यास, जो कालांतर में वेदव्यास के नाम से ख्यात हुए । दैनिक जागरण के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने समस्त विवरणों के साथ महाभारत ग्रन्थ की रचना कुछ इस तरह की थी कि यह एक महान इतिहास बन गया।
कहते हैं, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान गणेश ने वेदव्यास के मुख से निकली वाणी और वैदिक ज्ञान को लिपिबद्ध करने का काम किया था। आम जनों को समझने में आसानी हो, इसलिए महर्षि व्यास ने अपने वैदिक ज्ञान को चार हिस्सों में विभाजित कर दिया। वेदों को आसान बनाने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन किए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इसे 28 बार संशोधित किया था।
महर्षि व्यास का जन्म त्रेता युग के अन्त में हुआ था। वह पूरे द्वापर युग तक जीवित रहे। कहा जाता है कि महर्षि व्यास ने कलियुग के शुरू होने पर यहां से प्रयाण किया। महर्षि व्यास को भगवान विष्णु के 18वें अवतार माने जाते हैं । भगवान राम विष्णु के 17वें अवतार थे। बलराम और कृष्ण 19वें और 20वें। श्रीमद् भागवत कथा की रचना महाभारत की रचना के बाद की गई थी। कहा जाता है, महात्मा बुद्ध की तरह व्यास की जन्मस्थली क्षेत्र अभी नेपाल में है। पहले वह क्षेत्र भारत में ही थे।
महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। पराशर यायावर ऋषि थे। एक नदी को पार करने के दौरान उन्हें नाव खेने वाली सुन्दर कन्या मत्स्यगंधा उर्फ सत्यवती से प्रेम हो गया। उन्होंने सत्यवती से शारीरिक संबंध स्थापित करने की अभिलाषा जताई। इसके बदले में सत्यवती ने उनसे वरदान मांगा कि उसका कुँवारापन भाव कभी नष्ट न हो और शरीर से मछली का दुर्गंध हमेशा के लिए चला जाय। यौवन जीवन पर्यन्त बरकार रहे और शरीर से मत्स्य गंध दूर हो जाए। ऋषि पराशर ने सत्यवती को यह वरदान दिया और उनके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया। बाद में सत्यवती ने ऋषि व्यास को जन्म दिया।
महाभारत, श्रीमद्भगवद गीता, कई पुराणों के वे रचयिता थे। उनकी ख्याति तब ईरान तक थी और वे जगद्गुरु कहलाये। आषाढ़ पूर्णिमा में वेदव्यास का जन्म हुआ था, उनके जगद्गुरु के रूप में ख्याति अर्जित करने के कारण उनके जन्मदिवस की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है।