अब
स्वार्थ, छल के पाश में जकड़े हुए हैं लोग अब
अपने – अपने दंभ में , अकडे़ हुए हैं लोग अब
चल पडे़ हैं लोग सारे, राह सच की छोड़कर के
झूठ की ही राह को , पकडे़ हुए हैं लोग अब
तथ्य ये साबित हुआ , जब हो गए प्रयोग सारे
आधुनिकताओं में पड़ के, आत्ममुग्ध हैं लोग सारे
रिश्तों में और वस्तुओं में, फर्क न दिखता है कोई
बस जरूरत के समय ही, करते हैं उपयोग सारे
दूर खुद से खुद का वो साया हुआ है क्यों
जो कीमती था वही, जाया हुआ है क्यों
जबकि हमारे बीच तो , सब ठीकठाक था
आता समझ न अपना , पराया हुआ है क्यों