सावन की पहली बर्षा
पानी की दो बूंद गिरी
जगी किरण एक आशा की
सूखी हुई धरती और
मन ने ली एक अंगड़ाई
धरती के आंचल में
दबे बीज में
तरुणाई भर अाई
पाकर नमी
वो भी इठला
बाहर उघर आया
शुष्क मन हुआ
भीगा भीगा
टिप टिप जो बरसा पानी
झंकृत हो बज उठा
मन का सितार
मन मचल मचल जाए
हो रहा बाबला
ओढं बचपना
निकल पड़ा
सावन की पहली बोछारों का
अभिनन्दन करने
*ब्रजेश*