सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो ।।
सृष्टि सीमा से परे !
दृष्टि सीमा से परे !!
परम सृष्टि अदृश्य दृष्टि से तृप्त ,
अतुलनीय रहस्यमय महिमा हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो । -२
धरती पर ना पैर पड़े !
बिन साजन सब गैर लगे !!
रूप सौंदर्य कोमल कमल जैसी ,
मोहनेपन की अद्भुत गरिमा हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो । -२
कोई रोक ना सके
उठती हुई कलम को !
कोई रोक ना सके
बढ़ती हुई कदम को !!
जमीं से आसमान के ऊंचाई तक ,
लहराने वाली अद्भुत प्रतिभा हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो । -२
पंख मिले परवानों की !
मंच मिले अरमानों की !!
बदली बिजली मस्त हवाएं फिजाएं ,
चांद चांदनी सितारों की आसमां हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो । -२
कादंबिनी हो मंदाकिनी हो तुम !
अर्धांगिनी सखी संगनी हो तुम !!
एक अबोध सुबोध बालक के ,
ममतामय करुणामय मां हो ।
सीमा ! तुम प्यार की सीमा हो । -२
— मनोज शाह ‘मानस’