कभी तो हमसे तुम मिलो,सुनो किसी दयार में
कहो कभी मन की कही सुनो किसी दयार में।।
जो बात दिल में है कहो ,कहो कहो न चुप रहो
दिल टुकड़े टुकड़े हो रहा सुनो किसी दयार में।।
ये रात फिर न आएगी ये बात कह न पाओगे
कसम वसम सब तोड़ दो सुनो किसी दयार में।।
वफ़ा वफ़ा के गीत भी गा रही है तितलियां
लगाके कान सुन भी लो सुनो किसी दयार में।।
वो हीर वो रांझा सभी लगे है इक ही आस में
सब तोड़ के बंधन मिलो,सुनो किसी दयार में।।
वो अंखड़ियों की शोखियाँ घुली हुई बहार में।
अब मैकदे को छोड़ दो,सुनो किसी दयार में।।
हम आज मिल भी जाएंगे ,ये लोग बडबड़ाएंगे
न साथ कोई आएंगे,सुनो किसी दयार में।।
अभी तो हम मिले यहां बस एक दो ही पल सुनो
कदम जरा बढ़ा भी दो,सुनो किसी दयार में।।
कुछ दर्द देकर जायेगे, कुछ दर्द लेकर जाएंगे।
तुम बिन तो जी न पाएंगे ,सुनो किसी दयार में।।
वो बाजरे की रोटियां,वो छाछ वो मक्खन-दही।
सब याद खूब आएंगे ,सुनो किसी दयार में ।।
तुम छुपछुपाके आओ तो,गले से फिर लगाओ तो
हम यूँ ही जां से जायेगे,सुनो किसी दयार में ।।
— सविता वर्मा “ग़ज़ल”