काश!
हम भी होते,
किसी के लिए खास!
कोई,
हमारे लिए भी,
करती अरदास।
कोई,
हमें भी,
करती पसंद,
डालती हमें भी,
प्रेम की गुलाबी घास।
मिलाती,
हमारे साथ छन्द,
नहीं रहने देती,
हमें स्वच्छन्द।
काश!
हमारा भी
करती कोई इंतजार
उमड़ता हमारे लिए भी,
थोड़ा सा प्यार,
बनती,
जीवन का आधार।
काश!
कोई,
हमें भी,
देर हो जाने पर,
करती बार-बार फोन।
और हम,
उसकी डाँट खाकर,
हो जाते मौन।
हमारे कार्य में,
व्यस्त होने के कारण,
फोन न उठा सकने पर
हो जाती नाराज।
और हमें,
उसे मनाने के लिए,
उठाने पड़ते,
उसके नाज।
काश!
हमारे भी,
ऐसा होता,
एक घर,
और एक घरवाली,
हमारा साथ पाने को,
वह रहती मतवाली
और हमें पिलाती,
प्रेम-सुधा की प्याली।
काश!