गुजरा वक़्त
क्या देख रहे हो मुझे
इतनी गौर से
मैं गुजरा हूं वक़्त हूं
जा रहा हूं
कभी गुलज़ार था
अपने आस पास
होने वाली भीड़ से
उनके कहकहों से
आज अकेला हूं
रहा करती थीं भीड़
कभी साथ जो
आज खो गई
भीड़ में अकेला
रह गया
बुझता हुआ चिराग हूं
कोई उम्मीद नहीं
अब मुझ से
किसी मतलब का
अब नहीं रहा
किसी के लिए
लौट चला हूं
अकेला ही
अपने कर्मो के सहारे
अपनी मंजिल की ओर
*ब्रजेश*