गीतिका
भला क्या है बुरा क्या है, समझना आ गया हमको
बुरे हालात से लड़कर निकलना आ गया हमको
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समय के साथ चलकर आज तक सीखा बहुत हमनें
यहाँ अपने पराये को परखना आ गया हमको
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भले हो खार का मौसम, नहीं हमको फ़िकर कोई
खिला है दिल गुलाबों सा,महकना आ गया हमको
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समय ऐसे फिसलता जा रहा,ज्यों रेत मुट्ठी से
इसी रफ़्तार के सँग चाल चलना आ गया हमको
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लगाई आग लोगों ने हमारी जिंदगी में पर
तपा कर खुद को सोने सा दमकना आ गया हमको
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मुहब्बत रोग है ऐसा नहीं जिसकी दवा कोई
गँवाकर चैन अब दिन रैन जगना आ गया हमको
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घटाएं घिर के जब आईं, हुई बूंदों की जब छम छम
नहीं दिल पर रहा काबू, थिरकना आ गया हमको
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समझ में जब रमा रिश्तों की कीमत आ गई तो फिर
किसी के प्यार में हद से गुजरना आ गया हमको
रमा प्रवीर वर्मा