चीन अश्वत्थामा है
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था और कौरवों तथा पाण्डवों के साथ ही उसने अपने पिता द्रोणाचार्य से शस्त्र-विद्या की शिक्षा ली थी। द्रोणाचार्य ने ब्रह्मास्त्र की शिक्षा केवल अर्जुन को ही दी थी। अश्वत्थामा और कर्ण को उन्होंने ब्रह्मास्त्र की शिक्षा नहीं दी थी क्योंकि वे इन्हें ब्रह्मास्त्र के लिए उचित पात्र नहीं मानते थे। कर्ण और अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र के लिए गुरु द्रोण से बार-बार आग्रह करते रहे लेकिन उन्होंने इन दोनों को ब्रह्मास्त्र के संचालन और सन्धान की शिक्षा देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था। कर्ण ने बाद में झूठ बोलकर परशुराम की शिष्यता ग्रहण की और ब्रह्मास्त्र का ग्यान प्राप्त किया। झूठ पकड़े जाने पर परशुराम ने कर्ण को शाप दिया था कि ऐन मौके पर वह ब्रह्मास्त्र का संचालन भूल जाएगा। लेकिन अश्वत्थामा अपने पिता से ही ब्रह्मास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने की ज़िद पर अड़ा रहा। उसने अपनी माता के माध्यम से द्रोणाचार्य को मनाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा। अन्त में उसने पिता द्वारा ब्रह्मास्त्र नहीं सिखाने के कारण आत्महत्या करने की धमकी दी। पुत्र-मोह के कारण द्रोणाचार्य को झुकना पड़ा और उन्होंने न चाहते हुए भी अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दे डाली।
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद भी अश्वत्थामा ने रात में सोते हुए द्रौपदी-पुत्रों का वध कर दिया। उसको पकड़ने और दंडित करने के लिए भीम और अर्जुन ने अश्वत्थामा की खोज की। जब वह अर्जुन के सामने पड़ा तो बचने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर दिया। श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। दोनों के द्वारा प्रक्षेपित ब्रह्मास्त्र आकाश में टकराए और फलस्वरूप सृष्टि के तबाह होने की स्थिति आ गई। महर्षि व्यास समेत ऋषि-मुनियों ने दोनों से ब्रह्मास्त्र वापस लेने का अनुरोध किया। अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने यह बहाना करके कि उसे ब्रह्मास्त्र को लौटाना नहीं आता अपना ब्रह्मास्त्र वापस नहीं किया। ऋषियों ने बहुत अनुनय-विनय किया लेकिन उसने अपना ब्रह्मास्त्र वापस नहीं लिया। अन्त में ऋषियों ने उससे आग्रह किया कि वह अपने ब्रह्मास्त्र का लक्ष्य इस तरह निर्धारित करे कि कम से कम क्षति हो। दुष्ट अश्वत्थामा ने अभिमन्यु के गर्भ में पल रहे शिशु को नष्ट करने के लिए उसे उत्तरा के गर्भ को निशाना बनाया। शिशु गर्भ में ही मर गया। बाद में श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से मृत शिशु को जीवित कर दिया। द्रोणाचार्य सच ही कहते थे थे कि अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र का पात्र नहीं था।
चीन भी कलियुग का अश्वत्थामा है। यद्यपि उसने गलवान घाटी और लद्दाख से अपनी सेना हटाने के लिए अपनी सहमति दे दी है। सेनाएं पीछे हट भी रही है लेकिन अश्वत्थामा की तरह कभी भी भारत को धोखा दे सकता है। पूरी दुनिया जानती है कि चीन समझौता तोड़ने के लिए कुख्यात है। इसलिए भारत को सदैव सजग रहना होगा। कोरोना वायरस और भारत की सीमा पर अतिक्रमण के कारण चीन पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। अपनी खीझ मिटाने के लिए वह कभी भी आक्रमण कर सकता है। इसलिए भारत को हमेशा उच्च स्तरीय सावधानी बरतने की परम आवश्यकता है।