विदाई अंतर
“परीक्षाएँ समाप्त होनेवाली हैं न?”अभिभावक ने अपने बेटे के कला विषय के ट्यूटर से पूछा।
“जी हाँ, अब तो ग्यारहवीं से यह विज्ञान विषय को लेकर पढ़नेवाला है,अतः आज मेरा अंतिम दिन है।” ट्यूटर ने थोड़ी-सी मायुसी से भरकर कहा ।
“नहीं, आप चाहें तो दो दिन विराम देकर जैसे आ रहे थे, वैसे ही आते रहें।”अभिभावक ने बड़े इत्मिनानी भाव से अपनी इच्छा जाहिर की। इस बात पर विद्यार्थी और मैं, दोनों मानो आसमान से गिर पड़े! विद्यार्थी विज्ञान विषय पर तेज था, इसलिए तय था कि वह विज्ञान शाखा में ही पढ़ेगा।
“चाहे किसी भी शाखा में पढ़े, उसमें मानविकी, विशेषकर हिन्दी साहित्य का ज्ञान का होना ज़रूरी है।” इंजिनियरिंग पास करने के बाद एक स्थापित व्यापारी पिता ने पुत्र के लिए कहा। मास्टरजी ने कई बार इन अभिभावक महोदय को अपने व्यापारिक मेज पर पत्र-पत्रिकाएं पढ़ता पाया है। इसलिए और कुछ कहे बिना वे एक दूसरे विद्यार्थी, जो पहले का सहपाठी ही था, उसके यहाँ गएँ। काॅलिंग बेल दाबने पर उस विद्यार्थी के पिता ने कोलाप्सेबल गेट के भीतर से ही हाथ बढ़ा कर अंतिम महीने की फीस देकर कहा, ” मेरा बेटा तो अब विज्ञान विषय लेकर पढ़ेगा………!” बड़े अहम् भाव से उन्होंने अपनी बात कहकर घर के अंदर घुस गए। मास्टर जी यह सोच रहे थे कि अंतिम बिदाई ऐसे भी होती है।
— तपेश भौमिक