कविता

एक बूंद

जब किसी मेघ से
पानी की एक बूंद
गिरती है
कई प्रश्न होते है
आशंकाएं होती हैं
उसके मन में
क्या वह किसी मरुस्थल
में गिर कर सूख जायेगी
किसी अग्नि की ज्वाला
में गिरकर
भस्म हो जाएगी
यां किसी काटे पे गिरकर
उसका बदन
छलनी छलनी हो जाएगा
परंतु जब वो गिरती है
समुंदर की किसी सीप पर
और बन जाती है मोती
तब सोचती हे
सफल हो गया उसका जीवन
व्यर्थ थीं आशंका
आशंकाए कुछ भी करें हम
निर्णय तो
निर्णायक का है
उसे करना क्या है
मरुस्थल में मिलाना है
या फिर सीप बनाना है
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020